🌅 *शुक्राचार्य का ययाति को श्राप* ☘
देवयानी ने जब देखा कि, उसका युवा, सुंदर पति अब एक कुरूप बूढ़ा व्यक्ति हो गया है तो उसे कष्ट हुआ।
देवयानी ने पिता शुक्राचार्य से विनती की कि, वो अपना श्राप वापस ले लें।
शुक्राचार्य बोले – मेरा श्राप तो वापस नही हो सकता, हाँ अगर ययाति का कोई पुत्र अपनी इच्छा से अपना यौवन ययाति को दे दे तो ययाति फिर से युवा हो जायेगा।
भोग में डूबे ययाति का मन यौवन के आनंद से भरा नहीं था। वो बड़े आत्मविश्वास से अपने बड़े पुत्र यदु के पास गया और यौवन देने की बात कही।
यदु ने ययाति को मना कर दिया।
इसी प्रकार तुर्वस्तु, अनु, द्रुह्यु ने भी ययाति के आग्रह को ठुकरा दिया।
अंत में ययाति ने अपने सबसे छोटे पुत्र पुरु से याचना की,
पुरु ने सहर्ष अपने पिता की बात मान ली और यौवन दे दिया।
उसी पल ययाति पुनः युवा बन गये और पुरु एक वृद्ध व्यक्ति बन गया।
ययाति ने आनंदपूर्वक १०० साल तक यौवन का उपभोग किया। १०० वर्ष पूरे होने के बाद भी ययाति ने जब अपने को असंतुष्ट पाया तो वह सोच में पड़ गया।
उसे समझ आया कि, इच्छाओं का कोई अंत नहीं है, लाख मन की कर लो मगर फिर कोई नयी इच्छा पैदा हो जाती है। ऐसे कामनाओं के पीछे भागना व्यर्थ है।
अतः ययाति ने अपने पुत्र पुरु के पास वापस जाकर उसे उसका यौवन वापस करने की सोची।
जब पुरु को अपने पिता ययाति की इच्छा पता चली तो उसने कहा –
अपने पिता के आज्ञा का पालन तो मेरा कर्तव्य था, आप अगर चाहें तो कुछ समय और आनंद भोग करें, मुझे कोई कष्ट नही है।
ययाति ने जब यह बात सुनी तो उन्हें बहुत ग्लानि हुई। ययाति पुरु की उदारता से बहुत प्रभावित हुए और सबसे छोटा होने के बावजूद उन्होंने पुरु को अपना उत्तराधिकारी घोषित का दिया।
ययाति ने पुरु को उसका यौवन वपस लौटा दिया। पुनः वृद्ध रूप में आकर ययाति देवयानी और शर्मिष्ठा के साथ राज्य छोड़कर वानप्रस्थ हो गये।
आगे चलकर राजा ययाति के पाँचों पुत्रों ने ५ महानतम वंश का निर्माण किया।
राजा यदु – यदु वंश (यादव)
राजा तुर्वस्तु – यवन वंश (तुर्क)
राजा अनु – म्लेच्छ वंश (ग्रीक)
राजा द्रुह्यु – भोज वंश
राजा पुरु – पौरव वंश या कुरु वंश
*🌷🙏||卐|| जय श्री कृष्णा ||卐||🙏🌷*
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