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क्यों है सावन की विशेषता?

हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार सावन महीने को देवों के देव महादेव भगवान शंकर का महीना माना जाता है। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो महादेव भगवान शिव ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया।

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1.14.2023

Makar Sankranti in 2023 जानें तारीख, तिथि और शुभ मुहूर्त

 मकर संक्रांति जानें तारीख, तिथि और शुभ मुहूर्त

मकर संक्रांति के दिन यदि सूर्य देव की पूजा के समय इन मंत्रो 

का जाप किया जाये तो बहुत ही लाभ होता है और मनवांछित फल की प्राप्ति होती है

ॐ सूर्याय नम:,

ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः

ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:

2023 makar sankranti   

जानें तारीख, तिथि और शुभ मुहूर्त

⦿ हिंदू पंचांग के अनुसार, मकर संक्रांति 15 जनवरी, 2023 दिन रविवार को मनाई जाएगी।

⦿ पुण्य काल मुहूर्त : 07:15:13 से 12:30:00 बजे तक

⦿ अवधि : 5 घंटे 14 मिनट

⦿ महापुण्य काल मुहूर्त : 07:15:13 से 09:15:13 बजे तक

⦿ अवधि : पूरे 2 घंटे

⦿ मकर संक्रांति 2023 का समय : 14 जनवरी को 20:21:45

मकर संक्रांति त्यौहार का महत्व

धार्मिक और संस्कृत महत्व :

मकर संक्रांति के पर्व का अत्यधिक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। पुराणों के अनुसार, यह माना जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र, भगवान शनि, जो मकर राशि के स्वामी हैं, से मिलने जाते हैं। यह त्यौहार एक स्वस्थ बंधन का प्रतीक है जो एक पिता और पुत्र के बीच साझा किया जाता है। साथ ही, लोकप्रिय मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति असुरों पर भगवान विष्णु की विजय के प्रति सचेत होने के लिए मनाई जाती है। यह कथा आगे बताती है कि कैसे भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों के सिर काटकर और उन्हें मंदरा पर्वत के नीचे दफन करके उनके द्वारा किए गए संकट को समाप्त कर दिया। इसलिए, अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक है।

1.13.2023

-15 डिग्री तापमान समय तृतीय प्रहर रात्रि 3:00 बजे केदारनाथ धाम में #केदारनाथ_मंदिर

 तृतीय प्रहर रात्रि 3:00 बजे केदारनाथ धाम में 



-15 डिग्री तापमान समय तृतीय प्रहर रात्रि 3:00 बजे केदारनाथ धाम में हो रही बर्फबारी के बीच परमपिता शिव की आराधना में लीन साधु जन जी के दुर्लभ दर्शन है.. इस का नाम है भक्ति जहाँ भक्ति वहाँ शक्ति और जहाँ शक्ति वहाँ शिव भोले भंडारी

आदि शंकराचार्य द्वारा रचित शिव स्तुति

पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम। जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।। महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्। विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।। गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्। भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।। शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्। त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।। परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्। यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।। न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा। न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।। अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्। तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।। नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते। नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।। प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्। शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।। शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्। काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।। त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ। त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।। इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितो वेदसारशिवस्तवः संपूर्णः ॥

शिव पंचाक्षर स्तोत्र अर्थ सहित

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय। नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै न काराय नमः शिवायः॥ अर्थ- जिनके कंठ मे सांपों का हार है, जिनके तीन नेत्र हैं, भस्म ही जिनका अनुलेपन हुआ है और दिशांए ही जिनके वस्त्र हैं, उन अविनाशी महेश्वर 'न' कार स्वरूप शिव को नमस्कार है। श्लोक- मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय। मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै म काराय नमः शिवायः॥ अर्थ- गंगाजल और चंदन से जिनकी अर्चना हुई है, मन्दार के फूल और अन्य पुष्पों से जिनकी सुंदर पूजा हुई है, उन नंदी के अधिपति और प्रमथगणों के स्वामी महेश्वर 'म' कार स्वरूप शिव को नमस्कार है। श्लोक- शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय। श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नमः शिवायः॥ अर्थ- जो कल्याण स्वरूप हैं, पार्वती जी के मुख कमल को प्रसन्न करने के लिए जो सूर्य स्वरूप हैं, जो राजा दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले हैं, जिनकी ध्वजा में बैल का चिन्ह है, उन शोभाशाली श्री नीलकण्ठ 'शि' कार स्वरूप शिव को नमस्कार है। श्लोक- वसिष्ठ कुंभोद्भव गौतमार्य मुनींद्र देवार्चित शेखराय। चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नमः शिवायः॥ अर्थ- वशिष्ठ, अगस्त्य और गौतम आदि श्रेष्ठ ऋषि मुनियों ने तथा इंद्र आदि देवताओं ने, जिनके मस्तक की पूजा की है। चंद्रमा, सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र हैं, उन 'व' कार स्वरूप शिव को नमस्कार है। श्लोक- यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय। दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै य काराय नमः शिवायः॥ अर्थ- यक्षरूप धारण करने वाले, जटाधारी, जिनके हाथ में उनका पिनाक नाम का धनुष है, जो दिव्य सनातन पुरुष हैं, उन दिगम्बर देव 'य' कार स्वरूप शिव को नमस्कार है। पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ। शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

||इति श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रं सम्पूर्णम्||



#harharmahadev #केदारनाथ_मंदिर
🕉️🔱 हर हर महादेव 🙏🚩

#kedarnath

10.08.2021

भगवती की सूक्ष्म शक्ति से परे यह नव स्वरूप प्राथमिक, दिव्य और मानव जाति के लिए प्रेरणा हैं. इन स्वरूपों के मर्म को जानिए

 नवरात्र का उत्सव साधना का उत्सव है. आत्म चिंतन और प्रकृति से एकाकार का समय है. वर्ष के पहले नौ दिन देवी को समर्पित होते हैं क्योंकि सृष्टि के प्रारंभ का आधार देवी का स्वरूप ही है.

#दुर्गापूजा_दुर्गापट्टी #भक्ति #जयमातादी

जय माता दी


देवी भागवत के अनुसार सृष्टि का आदि स्वरूप ही शक्ति स्वरूप है और देवी ही इसकी प्रथम आद्या हैं. वह परमपिता ब्रह्मदेव की इच्छा शक्ति हैं, विष्णु की पालक शक्ति हैं और शिव के संहार की इच्छा में भगवती की ही शक्ति समाहित है. इसलिए इन्हें आदिशक्ति, महाविद्या और परमशक्ति के तौर पर जाना जाता है.


यही कारण है कि सनातन वर्ष परंपरा के प्रारंभिक नौ दिन देवी के विभिन्न स्वरूपों को समर्पित होते हैं. भगवती की सूक्ष्म शक्ति से परे यह नव स्वरूप प्राथमिक, दिव्य और मानव जाति के लिए प्रेरणा हैं.  इन स्वरूपों के मर्म पर डालते हैं नजर-


प्रथम देवी शैलपुत्रीः हिमालय की पुत्री

मां दुर्गा का पहला स्वरूप शैलपुत्री का है. पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री रूप में जन्म लेने कारण देवी शैलपुत्री नाम से विख्यात हुईं. देवी का यह स्वरूप इच्छाशक्ति और आत्मबल को दर्शाता है और इसके लिए प्रेरित करता है. सती दाह की घटना के बाद आदिशक्ति ने पुनः महादेव की अर्धांगिनी बनने के लिए आत्मबल दिखाया और जन्म लेकर तपस्या कर महादेव को फिर से प्राप्त किया.देवी का यह मानवीय स्वरूप बताता है कि मनुष्य की सकारात्मक इच्छाशक्ति ही भगवती की शक्ति है. नवरात्रि पूजन में पहले दिन इन्हीं का पूजन होता है. प्रथम दिन की पूजा में योगीजन अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं. देवी की इस मंत्र के साथ वंदना करें.  

वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम।

वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशंस्विनिम।।

 

माता की पूजा

द्वितीय ब्रह्मचारिणीः तप की देवी

देवी का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है. ब्रह्मा की इच्छाशक्ति और तपस्विनी का आचरण करने वाली यह देवी त्याग की प्रतिमूर्ति हैं . ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है. मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल प्रदान करने वाला है. उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है. नवदुर्गा के दूसरे दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता है. इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है. इस मंत्र से साधना करें.

दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।

 देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।


तृतीय चंद्रघण्टाः नाद की देवी

 मां दुर्गा की तीसरी शक्ति चंद्रघण्टा हैं. माता के मस्तक पर घण्टे के आकार का चंद्र शोभित है. यही इनके नाम का आधार है. देवी एकाग्रता की प्रतीक हैं और आरोग्य का वरदान देने वाली है. असल में नाद ही सृष्टि की चलायमान शक्ति है. यह ऊंकार का स्त्रोत है और सृष्टि की प्रथम ध्वनि है.

जय माता दी



घंटा ध्वनि सभी ध्वनियों में सबसे शुद्ध और शांत प्रवृत्ति वाली है. यह ऊर्जा क बढ़ाती है. जो लोग एकाग्र नहीं रह पाते, क्रोधी स्वभाव और विचलित मन वाले हैं, मां चंद्रघंटा की शरण लें.  और इस मंत्र से उपासना करें. 



पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।

प्रसादं तनुते महयं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।

 

चतुर्थ कूष्माण्डाः जननी स्वरूपा

 मां का यह स्वरूप ब्रहमांड का सृजन करता है. अपनी मंद, हल्की हंसी द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कूष्माण्डा पड़ा. इस दिन साधक का मन अनाहज चक्र में स्थित होता है. अतः पवित्र मन से पूजा−उपासना के कार्य में लगना चाहिए.



मां की उपासना मनुष्य को स्वाभाविक रूप से भवसागर से पार उतारने के लिए सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है. सरल शब्दों में कहें तो मां की आराधना व्याधियों और विकारों को नष्ट करती है. देवी नवीनता का प्रतीक हैं और सृजन की शक्ति हैं. अपनी लौकिक, परलौकिक उन्नति चाहने वालों को कूष्माण्डा मां की उपासना इस मंत्र से करनी चाहिए. 



सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तुमे।।

 

पंचम स्कन्दमाताः वत्सला स्वरूप 

मां दुर्गा का यह पांचवां स्वरूप स्कन्दमाता कहलाता है. भगवान स्कन्द यानी कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहते हैं. पांचवें दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थित रहता है. देवी कमलाआसन पर विराजित हैं औऱ इस रूप में भगवान विष्णु की पालक शक्ति हैं.


इन्हीं की प्रेरणा से श्रीसत्यनारायण प्रभु भक्त वत्सल हैं और पिता तुल्य हैं. इसी प्रेरणा वह संसार का पालन करते हैं और प्रत्येक जीव का रंजन करते हैं. देवी का यह स्वरूप चित्त में शीतलता और दया भरने वाला और अभय देने का प्रतीक है. देवी की पूजा इस मंत्र से करें. 



सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।



षष्ठम कात्यायनीः ऋषि पुत्री, वीरांगना

दुर्गापूजा दुर्गापट्टी

स्वरूप

मां दुर्गा का यह छठा स्वरूप अमोघ शक्ति और गौरव देने वाला है. देवी के इस नाम के पीछे की वजह ऋषि कात्यायन के घर जन्म लेना है. उनकी पुत्री होने से वह कात्यायनी कहलाती हैं. यह स्वरूप कर्मठता का प्रतीक है और नारी जाति को प्रेरणा देता है कि वह अपनी दया, तपस्या और त्याग जैसे गुणों के साथ वीरांगना भी है.


अबला तो किसी भी स्वरूप में नहीं. यह स्वरूप क्षमाशील भी है और दंडदेने वाला भी. देवी को दानव घातिनी भी कहते हैं. शुंभ निशुंभ औऱ रक्तबीज जैसे दानवों का अंत देवी ने इसी स्वरूप में किया. इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है. मां की अर्चना इस मंत्र से करें. 



चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शाईलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।



सप्तम कालरात्रिः शुभफला शुभांकरी देवी 

अंधकार में भी आशा की किरण और अभय देने वाला देवी का यह स्वरूप कालरात्रि कहलाता है. भयानक स्वरूप के बाद भी शुभफल देने वाली देवी शुभांकरी नाम से पूजित होती हैं. सातवें दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र में स्थित रहता है. उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं.


देवी का यह रौद्र स्वरूप शिव के संहार स्वरूप की प्रेरणा है. मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश और ग्रह बाधाओं को दूर करने वाली हैं. जिससे भक्त भयमुक्त हो जाते हैं. देवी का आभार इस मंत्र से प्रकट करें. 

एक वेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।

लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरणी।।

वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।

वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयड्करी।।

 

अष्टम महागौरीः पुण्यतेज स्वरूप 

मां दुर्गा का यह आठवां स्वरूप आठवें दिन पूजित होता है. यह धवल वर्ण के वस्त्र धारण करने वाली और गौर वर्ण की देवी हैं इसलिए महागौरी कहलाती हैं. देवी का यह स्वरूप शिवप्रिया स्वरूप है जो उनके साथ कैलाश में विराजित हैं.



अभय देने वाली, दया व ममता की मूर्ति और पुण्य फल देने वाली देवी शक्ति अमोघ और फलदायिनी है. इनकी उपासना से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं. देवी की उपासना इस मंत्र से करें. 



श्वेते वृषे समरूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः।

महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।



 नवम सिद्धिदात्रीः सिद्धियां प्रदान करने वाली 

मां दुर्गा की नौवीं शक्ति सिद्धिदात्री सभी सिद्धियों की अधिष्ठाता हैं. नाम से स्पष्ट है ये सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं. नव दुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम हैं. इनकी उपासना के बाद भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं.


देवी के लिए बनाए नैवेद्य की थाली में भोग का सामान रखकर प्रार्थना करनी चाहिए. वीर हनुमान को देवी कृपा से ही आठों सिद्धियां और नव निधियों का वरदान प्राप्त हुआ था. देवी की उपासना इस मंत्र से कीजिए.

सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।

सेव्यामाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।

9.07.2021

प्राचीन भारत की प्रमुख व्युह रचनाएं कितनी थी ? व्यूह रचनाओं को किस तरह निर्माण किया जाता था ?

 🚩🚩 प्राचीन महाभारत की प्रमुख व्युह रचनाएं 🚩🚩


“महाभारत” एक ऐसा महाग्रंथ है जिसमे निहित ज्ञान आज भी प्रासंगिक है| इसमें बताये गए युद्ध के १८ दिनों में तरह तरह की रणनीतिया और व्यूह रचे गए थे | जैसे अर्धचंद्र, वज्र, और सबसे अधिक प्रसिद्ध चक्रव्यूह |



आखिर कैसे दिखते थे, कैसे निर्माण होता था इन व्यूहों का??  कैसा था चक्र व्यूह? यह सब जानने के लिए निम्नलिखित लेख पढ़े.........


🔸 #वज्र_व्यूह 🚩



महाभारत युद्ध के प्रथम दिन अर्जुन ने अपनी सेना को इस व्यूह के आकार में सजाया था| इसका आकार देखने में इन्द्रदेव के वज्र जैसा होता था अतः इस प्रकार के व्यूह को "वज्र व्यूह" कहते हैं|


🔸 #क्रौंच_व्यूह 🚩



क्रौंच एक पक्षी होता है, जिसे आधुनिक अंग्रेजी भाषा में Demoiselle Crane कहते हैं| ये सारस की एक प्रजाति है| इस व्यूह का आकार इसी पक्षी की तरह होता है| युद्ध के दूसरे दिन युधिष्ठिर ने पांचाल पुत्र को इसी क्रौंच व्यूह से पांडव सेना सजाने का सुझाव दिया था| राजा द्रुपद इस पक्षी के सिर की तरफ थे, तथा कुन्तीभोज इसकी आँखों के स्थान पर थे| आर्य सात्यकि की सेना इसकी गर्दन के स्थान पर थी| भीम तथा पांचाल पुत्र इसके पंखो (Wings) के स्थान पर थे| द्रोपदी के पांचो पुत्र तथा आर्य सात्यकि इसके पंखो की सुरक्षा में तैनात थे| इस तरह से हम देख सकते है की, ये व्यूह बहुत ताकतवर एवं असरदार था| पितामह भीष्म ने स्वयं इस व्यूह से अपनी कौरव सेना सजाई थी| भूरिश्रवा तथा शल्य इसके पंखो की सुरक्षा कर रहे थे| सोमदत्त, अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा इस पक्षी के विभिन्न अंगों का दायित्व संभाल रहे थे|


🔸 #अर्धचन्द्र_व्यूह 🚩



इसकी रचना अर्जुन ने कौरवों के गरुड़ व्यूह के प्रत्युत्तर में की थी| पांचाल पुत्र ने इस व्यूह को बनाने में अर्जुन की सहायता की थी| इसके दाहिने तरफ भीम थे

 

🔸 #मंडल_व्यूह 🚩



भीष्म पितामह ने युद्ध के सांतवे दिन कौरव सेना को इसी मंडल व्यूह द्वारा सजाया था| इसका गठन परिपत्र रूप में होता था| ये बेहद कठिन व्यूहों में से एक था, पर फिर भी पांडवों ने इसे वज्र व्यूह द्वारा भेद दिया था| इसके प्रत्युत्तर में भीष्म ने "औरमी व्यूह" की रचना की थी; इसका तात्पर्य होता है समुद्र| ये समुद्र की लहरों के समान प्रतीत होता था| फिर इसके प्रत्युत्तर में अर्जुन ने "श्रीन्गातका व्यूह" की रचना की थी| ये व्यूह एक भवन के समान दिखता था|


🔸 #चक्रव्यूह 🚩



इसके बारे में सभी ने सुना है... इसकी रचना गुरु द्रोणाचार्य ने युद्ध के तेरहवें दिन की थी| दुर्योधन इस चक्रव्यूह के बिलकुल मध्य (Centre) में था| बाकि सात महारथी इस व्यूह की विभिन्न परतों (layers) में थे| इस व्यूह के द्वार पर जयद्रथ था| सिर्फ अभिमन्यु ही इस व्यूह को भेदने में सफल हो पाया| पर वो अंतिम द्वार को पार नहीं कर सका तथा बाद में ७ महारथियों द्वारा उसकी हत्या कर दी गयी|


🔸 #चक्रशकट_व्यूह 🚩


अभिमन्यु की हत्या के


पश्चात जब अर्जुन, जयद्रथ के प्राण लेने को उद्धत हुए, तब गुरु द्रोणाचार्य ने जयद्रथ की रक्षा के लिए युद्ध के चौदहवें दिन इस व्यूह की रचना की थी !!


साभार....

8.24.2020

Kyon Kosta Hai Khud Ko | क्यों कोसता है खुद को

 😴 😴 👉  Night Story 👈 😴 😴


       🙏 क्यों कोसता है खुद को🙏


✍ संतों की एक सभा चल रही थी...


किसी ने एक दिन एक घड़े में गंगाजल भरकर वहां रखवा दिया ताकि संत जन जब प्यास लगे तो गंगाजल पी सकें...


संतों की उस सभा के बाहर एक व्यक्ति खड़ा था. उसने गंगाजल से भरे घड़े को देखा तो उसे तरह-तरह के विचार आने लगे...


वह सोचने लगा- अहा ! यह घड़ा कितना भाग्यशाली है...???


एक तो इसमें किसी तालाब पोखर का नहीं बल्कि गंगाजल भरा गया और दूसरे यह अब सन्तों के काम आयेगा... । संतों का स्पर्श मिलेगा, उनकी सेवा का अवसर मिलेगा. ऐसी किस्मत किसी किसी की ही होती है...


घड़े ने उसके मन के भाव पढ़ लिए और घड़ा बोल पड़ा- बंधु मैं तो मिट्टी के रूप में शून्य पड़ा सिर्फ मिट्टी का ढेर था...


किसी काम का नहीं था. कभी ऐसा नहीं लगता था कि भगवान् ने हमारे साथ न्याय किया है...


फिर एक दिन एक कुम्हार आया. उसने फावड़ा मार-मारकर हमको खोदा और मुझे बोरी में भर कर गधे पर लादकर अपने घर ले गया ।


वहां ले जाकर हमको उसने रौंदा, फिर पानी डालकर गूंथा, चाकपर चढ़ाकर तेजी से घुमाया, फिर गला काटा, फिर थापी मार-मारकर बराबर किया । बात यहीं नहीं रूकी, उसके बाद आंवे के आग में झोंक दिया जलने को...


इतने कष्ट सहकर बाहर निकला तो गधे पर लादकर उसने मुझे बाजार में भेजने के लिए लाया गया . वहां भी लोग मुझे ठोक-ठोककर देख रहे थे कि ठीक है कि नहीं ?


ठोकने-पीटने के बाद मेरी कीमत लगायी भी तो क्या- बस 20 से 30 रुपये...


मैं तो पल-पल यही सोचता रहा कि हे ईश्वर सारे अन्याय मेरे ही साथ करना था...


रोज एक नया कष्ट एक नई पीड़ा देते हो. मेरे साथ बस अन्याय ही अन्याय होना लिखा है...


लेकिन ईश्वर की योजना कुछ और ही थी,


किसी सज्जन ने मुझे खरीद लिया और जब मुझमें गंगाजल भरकर सन्तों की सभा में भेज दिया...


तब मुझे आभास हुआ कि कुम्हार का वह फावड़ा चलाना भी उसकी☝ की कृपा थी...


उसका मुझे वह गूंथना भी उसकी ☝ की कृपा थी...


मुझे आग में जलाना भी उसकी☝ की मौज थी...


और...


बाजार में लोगों के द्वारा ठोके जाना भी भी उसकी☝ ही मौज थी...


अब मालूम पड़ा कि मुझ पर सब उस परमात्मा की कृपा ही कृपा थी... 😇


👉 दरसल बुरी परिस्थितिया हमें इतनी विचलित कर देती हैं कि हम उस परमात्मा के अस्तित्व पर भी प्रश्न उठाने लगते हैं और खुद को कोसने लगते हैं , क्यों हम सबमें शक्ति नहीं होती उसकी लीला समझने की...


कई बार हमारे साथ भी ऐसा ही होता है हम खुद को कोसने के साथ परमात्मा पर ऊँगली उठा कर कहते हैं कि उसने☝ ने मेरे साथ ही ऐसा क्यों किया ,


क्या मैं इतना बुरा हूँ ? और मलिक ने सारे दुःख तकलीफ़ें मुझे ही क्यों दिए । 😭


🙏 लेकिन सच तो ये है मालिक  उन तमाम पत्थरों की भीड़ में से तराशने के लिए एक आप को चुना । अब तराशने में तो थोड़ी तकलीफ तो झेलनी ही पड़ती है।


आपकी जिंदगी बदल रहा है यह चैनल जुड़े रहे जोड़ते रहे और बेहतर समाज का निर्माण करते रहे। 💞


😴😴😴😴😴😴😴😴😴😴😴

8.23.2020

भारत के इस काव्य को ‘अनुलोम-विलोम काव्य’ भी कहा जाता है। सिधा पढ़े राम और उल्टा पढ़े तो कृष्ण कथा ?

 अति दुर्लभ एक ग्रंथ ऐसा भी है हमारे सनातन धर्म मे

इसे तो सात आश्चर्यों में से पहला आश्चर्य माना जाना चाहिए ---


*यह है दक्षिण भारत का एक ग्रन्थ*


क्या ऐसा संभव है कि जब आप किताब को सीधा पढ़े तो राम कथा के रूप में पढ़ी जाती है और जब उसी किताब में लिखे शब्दों को उल्टा करके पढ़े

तो कृष्ण कथा के रूप में होती है ।


जी हां, कांचीपुरम के 17वीं शदी के कवि वेंकटाध्वरि रचित ग्रन्थ "राघवयादवीयम्" ऐसा ही एक अद्भुत ग्रन्थ है।


इस ग्रन्थ को

‘अनुलोम-विलोम काव्य’ भी कहा जाता है। पूरे ग्रन्थ में केवल 30 श्लोक हैं। इन श्लोकों को सीधे-सीधे

पढ़ते जाएँ, तो रामकथा बनती है और

विपरीत (उल्टा) क्रम में पढ़ने पर कृष्णकथा। इस प्रकार हैं तो केवल 30 श्लोक, लेकिन कृष्णकथा (उल्टे यानी विलोम)के भी 30 श्लोक जोड़ लिए जाएँ तो बनते हैं 60 श्लोक।

Anulom-vilom


पुस्तक के नाम से भी यह प्रदर्शित होता है, राघव (राम) + यादव (कृष्ण) के चरित को बताने वाली गाथा है ~ "राघवयादवीयम।"


उदाहरण के तौर पर पुस्तक का पहला श्लोक हैः


वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।

रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥


अर्थातः

मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं, जो

जिनके ह्रदय में सीताजी रहती है तथा जिन्होंने अपनी पत्नी सीता के लिए सहयाद्री की पहाड़ियों से होते हुए लंका जाकर रावण का वध किया तथा वनवास पूरा कर अयोध्या वापिस लौटे।


अब इस श्लोक का विलोमम्: इस प्रकार है


सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।

यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥


अर्थातः

मैं रूक्मिणी तथा गोपियों के पूज्य भगवान श्रीकृष्ण के

चरणों में प्रणाम करता हूं, जो सदा ही मां लक्ष्मी के साथ

विराजमान है तथा जिनकी शोभा समस्त जवाहरातों की शोभा हर लेती है।


" राघवयादवीयम" के ये 60 संस्कृत श्लोक इस प्रकार हैं:-


राघवयादवीयम् रामस्तोत्राणि

वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।

रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥


विलोमम्:

सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।

यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥


साकेताख्या ज्यायामासीद्याविप्रादीप्तार्याधारा ।

पूराजीतादेवाद्याविश्वासाग्र्यासावाशारावा ॥ २॥


विलोमम्:

वाराशावासाग्र्या साश्वाविद्यावादेताजीरापूः ।

राधार्यप्ता दीप्राविद्यासीमायाज्याख्याताकेसा ॥ २॥


कामभारस्स्थलसारश्रीसौधासौघनवापिका ।

सारसारवपीनासरागाकारसुभूरुभूः ॥ ३॥


विलोमम्:

भूरिभूसुरकागारासनापीवरसारसा ।

कापिवानघसौधासौ श्रीरसालस्थभामका ॥ ३॥


रामधामसमानेनमागोरोधनमासताम् ।

नामहामक्षररसं ताराभास्तु न वेद या ॥ ४॥


विलोमम्:

यादवेनस्तुभारातासंररक्षमहामनाः ।

तां समानधरोगोमाननेमासमधामराः ॥ ४॥


यन् गाधेयो योगी रागी वैताने सौम्ये सौख्येसौ ।

तं ख्यातं शीतं स्फीतं भीमानामाश्रीहाता त्रातम् ॥ ५॥


विलोमम्:

तं त्राताहाश्रीमानामाभीतं स्फीत्तं शीतं ख्यातं ।

सौख्ये सौम्येसौ नेता वै गीरागीयो योधेगायन् ॥ ५॥


मारमं सुकुमाराभं रसाजापनृताश्रितं ।

काविरामदलापागोसमावामतरानते ॥ ६॥


विलोमम्:

तेन रातमवामास गोपालादमराविका ।

तं श्रितानृपजासारंभ रामाकुसुमं रमा ॥ ६॥


रामनामा सदा खेदभावे दया-वानतापीनतेजारिपावनते ।

कादिमोदासहातास्वभासारसा-मेसुगोरेणुकागात्रजे भूरुमे ॥ ७॥


विलोमम्:

मेरुभूजेत्रगाकाणुरेगोसुमे-सारसा भास्वताहासदामोदिका ।

तेन वा पारिजातेन पीता नवायादवे भादखेदासमानामरा ॥ ७॥


सारसासमधाताक्षिभूम्नाधामसु सीतया ।

साध्वसाविहरेमेक्षेम्यरमासुरसारहा ॥ ८॥


विलोमम्:

हारसारसुमारम्यक्षेमेरेहविसाध्वसा ।

यातसीसुमधाम्नाभूक्षिताधामससारसा ॥ ८॥


सागसाभरतायेभमाभातामन्युमत्तया ।

सात्रमध्यमयातापेपोतायाधिगतारसा ॥ ९॥


विलोमम्:

सारतागधियातापोपेतायामध्यमत्रसा ।

यात्तमन्युमताभामा भयेतारभसागसा ॥ ९॥


तानवादपकोमाभारामेकाननदाससा ।

यालतावृद्धसेवाकाकैकेयीमहदाहह ॥ १०॥


विलोमम्:

हहदाहमयीकेकैकावासेद्ध्वृतालया ।

सासदाननकामेराभामाकोपदवानता ॥ १०॥


वरमानदसत्यासह्रीतपित्रादरादहो ।

भास्वरस्थिरधीरोपहारोरावनगाम्यसौ ॥ ११॥


विलोमम्:

सौम्यगानवरारोहापरोधीरस्स्थिरस्वभाः ।

होदरादत्रापितह्रीसत्यासदनमारवा ॥ ११॥


यानयानघधीतादा रसायास्तनयादवे ।

सागताहिवियाताह्रीसतापानकिलोनभा ॥ १२॥


विलोमम्:

भानलोकिनपातासह्रीतायाविहितागसा ।

वेदयानस्तयासारदाताधीघनयानया ॥ १२॥


रागिराधुतिगर्वादारदाहोमहसाहह ।

यानगातभरद्वाजमायासीदमगाहिनः ॥ १३॥


विलोमम्:

नोहिगामदसीयामाजद्वारभतगानया ।

हह साहमहोदारदार्वागतिधुरागिरा ॥ १३॥


यातुराजिदभाभारं द्यां वमारुतगन्धगम् ।

सोगमारपदं यक्षतुंगाभोनघयात्रया ॥ १४॥


विलोमम्:

यात्रयाघनभोगातुं क्षयदं परमागसः ।

गन्धगंतरुमावद्यं रंभाभादजिरा तु या ॥ १४॥


दण्डकां प्रदमोराजाल्याहतामयकारिहा ।

ससमानवतानेनोभोग्याभोनतदासन ॥ १५॥

Shree

               ~ विलोमम्: ~

नसदातनभोग्याभो नोनेतावनमास सः ।

हारिकायमताहल्याजारामोदप्रकाण्डदम् ॥ १५॥


सोरमारदनज्ञानोवेदेराकण्ठकुंभजम् ।

तंद्रुसारपटोनागानानादोषविराधहा ॥ १६॥


विलोमम्:

हाधराविषदोनानागानाटोपरसाद्रुतम् ।

जम्भकुण्ठकरादेवेनोज्ञानदरमारसः ॥ १६॥


सागमाकरपाताहाकंकेनावनतोहिसः ।

न समानर्दमारामालंकाराजस्वसा रतम् ॥ १७ विलोमम्:

तं रसास्वजराकालंमारामार्दनमासन ।

सहितोनवनाकेकं हातापारकमागसा ॥ १७॥


तां स गोरमदोश्रीदो विग्रामसदरोतत ।

वैरमासपलाहारा विनासा रविवंशके ॥ १८॥


विलोमम्:

केशवं विरसानाविराहालापसमारवैः ।

ततरोदसमग्राविदोश्रीदोमरगोसताम् ॥ १८॥


गोद्युगोमस्वमायोभूदश्रीगखरसेनया ।

सहसाहवधारोविकलोराजदरातिहा ॥ १९॥


विलोमम्:

हातिरादजरालोकविरोधावहसाहस ।

यानसेरखगश्रीद भूयोमास्वमगोद्युगः ॥ १९॥


हतपापचयेहेयो लंकेशोयमसारधीः ।

राजिराविरतेरापोहाहाहंग्रहमारघः ॥ २०॥


विलोमम्:

घोरमाहग्रहंहाहापोरातेरविराजिराः ।

धीरसामयशोकेलं यो हेये च पपात ह ॥ २०॥


ताटकेयलवादेनोहारीहारिगिरासमः ।


हासहायजनासीतानाप्तेनादमनाभुवि  ॥ २१॥


विलोमम्:

विभुनामदनाप्तेनातासीनाजयहासहा ।

ससरागिरिहारीहानोदेवालयकेटता ॥ २१॥


भारमाकुदशाकेनाशराधीकुहकेनहा ।

चारुधीवनपालोक्या वैदेहीमहिताहृता ॥ २२॥


विलोमम्:

ताहृताहिमहीदेव्यैक्यालोपानवधीरुचा ।

हानकेहकुधीराशानाकेशादकुमारभाः ॥ २२॥


हारितोयदभोरामावियोगेनघवायुजः ।

तंरुमामहितोपेतामोदोसारज्ञरामयः ॥ २३॥


विलोमम्:

योमराज्ञरसादोमोतापेतोहिममारुतम् ।

जोयुवाघनगेयोविमाराभोदयतोरिहा ॥ २३॥


भानुभानुतभावामासदामोदपरोहतं ।

तंहतामरसाभक्षोतिराताकृतवासविम् ॥ २४॥


विलोमम्:

विंसवातकृतारातिक्षोभासारमताहतं ।

तं हरोपदमोदासमावाभातनुभानुभाः ॥ २४॥

हंसजारुद्धबलजापरोदारसुभाजिनि ।

राजिरावणरक्षोरविघातायरमारयम् ॥ २५॥


विलोमम्: 👀👀

यं रमारयताघाविरक्षोरणवराजिरा ।

निजभासुरदारोपजालबद्धरुजासहम् ॥ २५॥


सागरातिगमाभातिनाकेशोसुरमासहः ।

तंसमारुतजंगोप्ताभादासाद्यगतोगजम् ॥ २६॥


विलोमम्:

जंगतोगद्यसादाभाप्तागोजंतरुमासतं ।

हस्समारसुशोकेनातिभामागतिरागसा ॥ २६॥


वीरवानरसेनस्य त्राताभादवता हि सः ।

तोयधावरिगोयादस्ययतोनवसेतुना ॥ २७॥


विलोमम्

नातुसेवनतोयस्यदयागोरिवधायतः ।

सहितावदभातात्रास्यनसेरनवारवी ॥ २७॥


हारिसाहसलंकेनासुभेदीमहितोहिसः ।

चारुभूतनुजोरामोरमाराधयदार्तिहा ॥ २८॥


विलोमम्

हार्तिदायधरामारमोराजोनुतभूरुचा ।

सहितोहिमदीभेसुनाकेलंसहसारिहा ॥ २८॥


नालिकेरसुभाकारागारासौसुरसापिका ।

रावणारिक्षमेरापूराभेजे हि ननामुना ॥ २९॥


विलोमम्:

नामुनानहिजेभेरापूरामेक्षरिणावरा ।

कापिसारसुसौरागाराकाभासुरकेलिना ॥ २९॥


साग्र्यतामरसागारामक्षामाघनभारगौः ॥

निजदेपरजित्यास श्रीरामे सुगराजभा ॥ ३०॥


विलोमम्:

भाजरागसुमेराश्रीसत्याजिरपदेजनि ।स

गौरभानघमाक्षामरागासारमताग्र्यसा ॥ ३०॥


॥ इति श्रीवेङ्कटाध्वरि कृतं श्री  ।।


*कृपया अपना थोड़ा सा कीमती वक्त निकाले और उपरोक्त श्लोको को गौर से अवलोकन करें कि यह दुनिया में कहीं भी ऐसा न पाया जाने वाला ग्रंथ है ।*
🚩जय श्री राम🍃🍂🚩

8.22.2020

चौरचन (Chaurchan) पर्व के बारे में पुराणों में ऐसा वर्णन मिलता है

 चौरचन - चौठचंद्र - पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। 


भाद्रपद की चतुर्थी तिथि यानी जिस दिन गणेश चतुर्थी के दिन ही चौरचन पर्व मनाया जाता है। महाराष्ट्र में जहां इस दिन लोग गणपति की स्थापना करते हैं वहीं मिथिला में इस दिन गणेश और चंद्र देव का पूजन किया जाता है।

चौरचन (Chaurchan) पर्व के बारे में पुराणों में ऐसा वर्णन मिलता है
चौरचन(पावैन) पूजा का शुभ मुहूर्त: 22 अगस्त, शनिवार – शाम 06 बजकर 53 मिनट से 07 बजकर 59 मिनट तक

इसी दिन चौरचन भी मनाया जाता है। इस साल चौरचन 22 अगस्त शनिवार को मनाया जाएगा। यह त्योहार मिथिला यानी बिहार में मनाया जाता है। इस दिन चंद्र देव की उपासना की जाती है। कहते हैं कि जो व्यक्ति गणेश चतुर्थी की शाम भगवान गणेश के साथ चंद्र देव की पूजा करता है। वह चंद्र दोष से मुक्त हो जाता है। बता दें कि चतुर्थी (चौठ) तिथि में शाम के समय चौरचन पूजा होती है। चौरचन (Chaurchan) पर्व के बारे में पुराणों में ऐसा वर्णन मिलता है कि इसी दिन चंद्रमा को कलंक लगा था।

चौठ चंद्र पूजन विधि: 


इस दिन सुबह से शाम व्रत रखकर भक्त पूजन में लीन रहते हैं। शाम के समय घर के आंगन को गाय के गोबर से लीपकर साफ करते हैं। फिर केले के पत्ते की मदद से गोलाकार चांद बनाएं। अब इस पर तरह-तरह के मीठे पकवान जैसे कि खीर, मिठाई, गुजिया और फल रखें। पश्चिम दिशा की ओर मुख करके रोहिणी (नक्षत्र) सहित चतुर्थी में चंद्रमा की पूजा उजले फूल से करें। इसके उपरांत घर में जितने लोग हैं, उतनी ही संख्या में पकवानों से भरी डाली और दही के बर्तन को रखें। अब एक-एक कर डाली, दही का बर्तन, केला, खीरा आदि को हाथों में उठाकर ‘सिंह: प्रसेनमवधिस्सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमार मन्दिस्तव ह्येष स्यामन्तक: स्त’ इस मंत्र को पढ़कर चंद्रमा को समर्पित करें।

चौरचन की कथा: 


एक दिन भगवान गणेश अपने वाहन मूषक के साथ कैलाश पर घूम रहे थे। तभी अचानक चंद्र देव उन्हें देखकर हंसने लगे, गणेश जी को उनके हंसने की वजह समझ नहीं आई। उन्होंने चंद्र देव से पूछा कि आप क्यों हंस रहे हैं। इसका जवाब देते हुए चंद्र देव ने कहा कि वह भगवान गणेश का विचित्र रूप देख कर हंस रहे हैं। साथ ही उन्होंने अपने रूप का बखान भी किया।
गणेश जी को चंद्र देव की मजाक उड़ाने की प्रवृत्ति पर क्रोध आया। उन्होंने चंद्र देव को यह श्राप दिया कि तुम्हें अपने रूप पर बहुत अभिमान है कि तुम बहुत सुंदर दिखते हो लेकिन आज से तुम कुरूप हो जाओ। जो कोई भी व्यक्ति तुम्हें देखेगा उसे झूठा कलंक लगेगा। कोई अपराध न होने के बावजूद भी वह अपराधी कहलाएगा।

श्राप सुनते ही चंद्र देव का अभिमान चूर चूर हो गया। उन्होंने गणेश जी से क्षमा मांगी और कहा भगवन् मुझे इस श्राप से मुक्त कीजिए। चंद्र देव को पश्चाताप करते देख गणेश जी ने उन्हें क्षमा कर दिया। श्राप पूरी तरह से वापस नहीं लिया जा सकता था इसलिए यह कहा गया कि जो कोई भी व्यक्ति गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र देव को देखेगा। उस पर झूठा आरोप लगेगा। इससे बचने के लिए ही मिथिला में गणेश चतुर्थी की शाम को चंद्रमा की पूजा की जाती है।




श्री राम मंदिर कि दिवारों पर अपना नाम खुदवाने के लिए करें ये छोटा काम और सदियों तक आपका नाम मंदिर के दिवारों पर रहेगा

श्री राम मंदिर कि दिवारों पर अपना नाम खुदवाने के लिए करें ये छोटा काम !

और सदियों तक आपका नाम मंदिर के दिवारों पर रहेगा

अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन के बाद अब मंदिर निर्माण की कवायद तेज हो गई है। अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर की दीवारों पर सदियों के लिए नाम लिखवाने का एक बड़ा मौका है। बस इसलिए आपको तांबा दान करना होगा। रामजन्मभूमि ट्रस्ट ने इसलिए भक्तों से तांबे की पत्तियां दान करने को कहा है। उन्होंने कहा है कि तांबे की पत्तियों में लोग अपने या अपने परिवार के लोगों का नाम भी लिखवा सकते हैं।

Shree Ram Mandir Nirman


दरअसल, राम मंदिर निर्माण में किसी प्रकार के लोहे या सरिया का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। ट्रस्ट ने बताया है कि लोहे की जगह मंदिर निर्माण में तांबे की छडें प्रयोग होंगी, जिससे मंदिर सदियों तक खड़ी रहेगी। 

राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने गुरुवार को ट्वीट कर कहा, ' मंदिर निर्माण में लगने वाले पत्थरों को जोड़ने के लिए तांबे की पत्तियों का उपयोग किया जाएगा। निर्माण कार्य हेतु 18 इंच लम्बी, 3 एमएम गहरी और 30 एमएण चौड़ी 10,000 पत्तियों की आवश्यकता पड़ेगी। श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र श्रीरामभक्तों का आह्वान करता है कि तांबे की पत्तियां दान करें।'

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए रामभक्तों से मांगी जा रहीं तांबे की पत्तियां, जानें वजह

निर्माण के कार्य में लगभग 36-40 महीने का समय लगने का अनुमान है।


ट्रस्ट ने आगे कहा कि 'इन तांबे की पत्तियों पर दानकर्ता अपने परिवार, क्षेत्र अथवा मंदिरों का नाम गुदवा सकते हैं। इस प्रकार से ये तांबे की पत्तियां न केवल देश की एकात्मता का अभूतपूर्व उदाहरण बनेंगी, अपितु मन्दिर निर्माण में सम्पूर्ण राष्ट्र के योगदान का प्रमाण भी देंगी।'

ट्रस्ट ने कहा कि श्री रामजन्मभूमि मंदिर का निर्माण भारत की प्राचीन निर्माण पद्धति से किया जा रहा है ताकि वह सहस्त्रों वर्षों तक न केवल खड़ा रहे, अपितु भूकम्प, झंझावात अथवा अन्य किसी प्रकार की आपदा में भी उसे किसी प्रकार की क्षति न हो। मंदिर के निर्माण में लोहे का प्रयोग नही किया जाएगा।

ट्रस्ट ने एक अन्य ट्वीट में कहा कि श्री राम जन्मभूमि मन्दिर के निर्माण हेतु कार्य प्रारंभ हो गया है। CBRI रुड़की और IIT मद्रास के साथ मिलकर निर्माणकर्ता कम्पनी L&T के अभियंता भूमि की मृदा के परीक्षण के कार्य में लगे हुए हैं। मंदिर निर्माण के कार्य में लगभग 36-40 महीने का समय लगने का अनुमान है।

बच्चों मे यह आदत डाले | Achchi Baten

बच्चों मे यह आदत अवश्य डाले...

अच़्छी आदतें


1: मंदिर घुमाने लेकर जाइये !
2: तिलक लगाने की आदत डालें !
3: देवी देवताओं की कहानियां सुनायें !
4: संकट आये तो नारायण नारायण बोलें !
5: गलती होने पर हे राम बोलने की आदत डालें !
6: गायत्री मंत्र, हनुमान चालीसा व महामृत्युन्जय मंत्र आदि याद करायें !
7: अकबर, हुमांयू, सिकन्दर के बदले शिवाजी, महाराणा प्रताप जैसे शूरवीरों की कहानियां सुनायें !
8: घर मे छोटे बच्चों से जय श्री कृष्णा, राधे राधे,
हरी बोल, जय माता दी,
राम राम कहिये, और उनसे भी जवाब मे राम राम बुलवाने की आदत डालिये !
9: बाहर जाते समय bye न कहे बच्चो से जय श्री कृष्णा कहे।

अपने धर्म का ज्ञान हमको ही देना है ! कोई और नहीं आयेगा यह सब सिखाने को    🙏

Definition of Bhakti | It is of the form of Supreme Love towards God.

 Definition of Bhakti


🍃It is of the form of Supreme Love towards God.

Definition of Bhakti


Commentary:

The term Bhakti comes from the root "Bhaj", which means "to be attached to God."

8.20.2020

श्रीकृष्ण जी की के सात विशेष विग्रह | वृंदावन वह स्थान है, जहां भगवान श्रीकृष्ण ने बाललीलाएं की

श्रीकृष्ण जी की के सात विशेष विग्रह 

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वृंदावन वह स्थान है, जहां भगवान श्रीकृष्ण ने बाललीलाएं की व अनेक राक्षसों का वध किया। यहां श्रीकृष्ण के विश्वप्रसिद्ध मंदिर भी हैं। आज हम आपको 7 ऐसी चमत्कारी श्रीकृष्ण प्रतिमाओं के बारे में बता रहे हैं, जिनका संबंध वृंदावन से है। इन 7 प्रतिमाओं में से 3 आज भी वृंदावन के मंदिरों में स्थापित हैं, वहीं 4 अन्य स्थानों पर प्रतिष्ठित हैं-

5.31.2019

Which is the best in love and knowledge - प्रेम और ज्ञान में कौन श्रेष्ठ ?

🌷 *प्रेम और ज्ञान में कौन श्रेष्ठ ?* 🌷
Which is the best in love and knowledge - प्रेम और ज्ञान में कौन श्रेष्ठ ?
Which is the best in love and knowledge - प्रेम और ज्ञान में कौन श्रेष्ठ ?

🌅एक राजा के दो बेटे थे। राजा के पास बहुत धन था। एक बेटे का नाम ज्ञान था, एक बेटे का नाम प्रेम था। राजा बड़ी चिंता में था कि किसको अपना राज्य सौंप जाए। किसी फकीर को पूछा कि कैसे तय करूं? दोनों जुड़वां थे, साथ—साथ पैदा हुए थे। उम्र में कोई बड़ा—छोटा न था; नहीं तो उम्र से तय कर लेते। दोनों प्रतिभाशाली थे, दोनों मेधावी थे, दोनों कुशल थे। कैसे तय करें?
बाप का मन बड़ा डावाडोल था, कहीं अन्याय न हो जाए! फकीर से पूछा। फकीर ने कहा, 'यह करो। दोनों बेटों को कह दो कि यही बात निर्णायक होगी। तुम जाओ और सारी दुनिया में बड़े—बड़े नगरों में कोठियां बनाओ। जो कोठियां बनाने में पांच साल के भीतर सफल हो जाएगा, वही मेरे राज्य का उत्तराधिकारी होगा।'
ज्ञान चला। उसने कोठियां बनानी शुरू कर दीं। मगर पांच साल में सारी पृथ्वी पर कैसे कोठियां बनाओगे ? हजारों बडे नगर हैं! कुछ कोठियां बनायीं, उसका धन भी चुक गया,सामर्थ्य भी चुक गई, थक भी गया, परेशान भी हो गया। और फिर बात भी मूढ़तापूर्ण मालूम पडी, इससे सार क्या है? पांच साल बाद जब दोनों लौटे तो ज्ञान तो थका-मांदा था,भिखमंगे की हालत में लौटा। सब जो उसके पास थी संपदा,वह सब लगा दी। कुछ कोठियां जरूर बन गईं, लेकिन इससे क्या सार? वह बड़ा पराजित और विषाद में लौटा।
प्रेम बड़ा नाचता हुआ लौटा। बाप ने पूछा, कोठियां बनाई? प्रेम ने कहा कि बना दीं, सारी दुनिया पर बना दीं। सब बड़े नगरों में क्या, छोटे —छोटे नगरों में भी बना दीं। समय काफी था।
बाप भी थोड़ा चौंका। उसने पूछा कि यह तेरा बड़ा भाई, यह तेरा दूसरा भाई, यह तो थका—हारा लौटा है कुछ नगरों में बना कर, तूने कैसे बना लीं? प्रेम ने कहा कि मैंने मित्र बनाए, जगह—जगह मित्र बनाए। सभी मित्रों की कोठिया मेरे लिए खुली हैं। जिस गांव में जाऊं वहीं, एक क्या दो —दो,तीन—तीन कोठियां हैं। मकान मैंने नहीं बनाए, मैंने मित्र बनाए। यह आदमी मकान बनाने में लग गया, इसलिए चूक हो गई। मकान तो मेरे लिए खुले खड़े हैं, कोठियां मेरे लिए तैयार हैं, जगह—जगह तैयार हैं। जहां आप कहें, वहा मेरी कोठी। हर नगर में मेरी कोठी!
Which is the best in love and knowledge
प्रेम और ज्ञान में कौन श्रेष्ठ ?

एक तो ढंग है प्रेम का और एक ढंग है ज्ञान का. ज्ञान से अंततः विज्ञान पैदा हुआ।ज्ञान की आखिरी संतति विज्ञान है। विज्ञान से अंततः टेक्नोलॉजी पैदा हुई। विज्ञान की संतति टेक्नोलॉजी है; तकनीक है।
प्रेम से भक्ति पैदा होती है। भक्ति प्रेम की पुत्री है। भक्ति से भगवान पैदा होता है। वह दोनों दिशाएं बड़ी अलग हैं।
ज्ञान के मार्ग से जो चला है, वह कहीं न कहीं विज्ञान में भटक जाएगा। इसलिए तो पश्चिम विज्ञान में भटक गया। यूनानी विचारकों से पैदा हुई पश्चिम की सारी परंपरा। वह ज्ञान के. उनकी बडी पकड थी। अरस्तू, प्लेटो! तर्क और विचार और ज्ञान! जानना है! जान कर रहेंगे! उस जानने का अंतिम परिणाम हुआ कि अणुबम तक आदमी पहुंच गया। मौत खोज ली और कुछ सार न आया। पूरब प्रेम से चला है। तो हमने समाधि खोजी। हमने कुछ अनूठा आकाश खोजा—जहां सब भर जाता है, सब पूरा हो जाता है। अब तो पश्चिम परेशान है,अपने ही ज्ञान से परेशान है।
अलबर्ट आइंस्टीन मरने के पहले कह कर मरा है कि 'अगर मुझे दुबारा जन्म मिले तो मैं वैज्ञानिक न होना चाहूंगा—कतई नहीं! प्लंबर होना पसंद कर लूंगा, वैज्ञानिक होना पसंद नहीं करूंगा।' बड़ी पीड़ा में मरा है कि क्या सार? जानने का क्या सार? होने में सार है।
प्रेम भी जब तक झुके नहीं तब तक भक्ति नहीं बनता। ज्ञान भी अगर झुक जाए तो ध्यान बन जाता है। लेकिन ज्ञान झुकने को राजी नहीं होता। प्रेम झुकने को बड़ी जल्दी राजी हो जाता है.
*"पोथी पढ़ि-पढ़ि, जग मुआ ,पंडित भया न कोय"*
*"ढाई आखर प्रेम का,पढ़े सो पंडित होय।"*
💖¸.•*""*•.¸ *जय श्री राधे ¸.•*""*•.¸ 💖
*श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव*
🌸💐👏🏼💚💖*

अखण्ड एकता का स्पष्ट वर्णन - Explicit description of Akand Unity

ब्रह्मभूत हो जानेपर विद्वान फिर जन्म मरण रूप संसार चक्र में नही पड़ता इसलिए आत्मा का ब्रह्म से अभिन्नत्व भली प्रकार जान लेना चाहये।
Explicit description of Akand Unity
Explicit description of Akand Unity
ब्रह्म सत्य ज्ञानस्वरूप और अनंत है वह सुद्ध पर स्वतः सिद्ध नित्य एकमात्र आनंद स्वरूप अंतरतम और अभिन्न है,तथा निरन्तर उन्नति शाली है।
यह परम द्वेत ही एक सत्य पदार्थ है क्योंकि इस स्वात्मा से अतिरिक्त और कोई वस्तु है ही नही। इस परमार्थ तत्व का पूर्ण बोध हो जाने पर और कुछ भी नही रहता।
यह सम्पूर्ण विश्व जो अज्ञान से नाना प्रकार का प्रतीत हो रहा है, समस्त भावनाओ दोष रहित (अर्थात निर्विकल्प) ब्रह्म ही है।
सत्त ब्रह्म का कार्य यह सकल प्रपंच स्वरूप ही है, क्योकि यह सम्पूर्ण वही तो है उससे भिन्न कुछ भी नही। जो कहता है कि उससे पृथक भी कुछ है उसका मोह दूर नही हुवा उसका यह कथन सोये हुवे पुरुष के प्रलाप समान है।
परमार्थ तत्त्व जानने वाले भगवान कृष्णचन्द्र ने यह निश्चित किया है कि न तो में ही भूतो में स्थित हु और न वे मुझ में स्थित है।
यदि विश्व सत्य होता तो सुषुप्ति में भी उसका प्रतीती होनी चाहये थी किन्तु उस समय इसकी कुछ भी प्रतीती नहीं होती इसलिए यह स्वप्न समान असत और मिथ्या ही है।
ये परमात्मा और जीव की उपाधियां है इनकी भली प्रकार वोध हो जाने पर परमात्मा ही रहता है और न जीव आत्मा ही जिस प्रकार राज्य राजा की उपाधि है और ढाल सैनिक की इन दोनों उपाधि के न रहने पर न कोई राजा है न योद्धा ।
इस प्रकार लक्षणा द्वारा जीवात्मा और परमात्मा चेतनाशकि एकता का निश्चय के बुद्धिमान जन उनके अखण्ड भाव का परिचय ज्ञान प्राप्त करते है ऐसे ही सैकड़ो महावाक्य ब्रह्म और आत्मा की अखण्ड एकता का स्पष्ट वर्णन किया गया है।
श्रीगुरवे नमः
ॐ नमः शिवाय
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#क्या_इराक_के_5_लाख__यजीदी__प्राचीन_यजुर्वेदी_हिन्दू_है_?
Explicit description of Akand Unity

यह लोग स्वयं को न तो #मुसलमान मानते हैं, न #पारसी और न #ईसाई। यह अपने को ‘यजीदी’ कहते हैं। इस #समुदाय के उपासना-स्थल #हिन्दू_मंदिरों की तरह होते हैं, ये #सूर्य की भी पूजा करते हैं और इनमें #मोर की बहुत मान्यता है। उल्लेखनीय है कि मोर केवल #दक्षिण_एशिया में पाया जाता है। इराक, #सीरिया इत्यादि देशों में मोर नहीं पाए जाते। सदियों के उत्पीड़न के बावजूद यज़ीदियों ने अपना #धर्म नहीं छोड़ा, जो दर्शाता है कि वे अपनी पहचान और #धार्मिक_चरित्र को लेकर कितने दृढ़ हैं। इस समुदाय के लोगों ने #भारत में शरण लेने के लिए #मोदी जी से आग्रह भी किया है।
देखिए हिन्दुओं और यजीदियों में कितनी समानताएं हैं :
• यजीदियों के घरों में तथा मंदिरों मे मोर के आकार के #दीप_स्तम्भ पाए जाते हैं। हिन्दू उसमें #बाती लगाते हैं, तो यजीदी उसका #चुम्बन लेते हैं।
• यजीदियों के मंदिरों का आकार हिन्दू मंदिरों के समान ही होता है और उसमें #गर्भगृह भी होते हैं।
• यजीदियों के घरों में #आरती की थाली पायी जाती है। थाली से हिन्दू भी #देवताओं की आरती करते हैं।
• यजीदियों के पवित्र #लतीश_मंदिर की दीवारों पर #साड़ी पहनी हुई महिला का भित्तिचित्र है। साड़ी हिन्दू #महिलाओं का सर्वमान्य #परिधान है।
• लतीश मंदिर के प्रवेश-द्वार पर #नाग का चिह्न है। इस क्षेत्र के किसी भी प्राचीन #संस्कृति के मंदिर में नाग का चिह्न नहीं है। #शिवालयों पर नाग का चिह्न अवश्य होता है।
• यजीदियों के #वैवाहिक_सम्बन्ध उनके ही #मुरीद#शेख, पीर इन जातियों में किए जाते हैं। जाति के बाहर नहीं होते। हिन्दू समाज में भी यही पद्धति है। कदाचित येजीदी समाज में भी गोत्रादि रूढि प्रचलित होंगी।
• यजीदी और हिन्दू पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं।
• यजीदियों की देवता को प्रार्थना करने की पद्धति हिन्दू धर्म में स्थित नमस्कार के समान ही है। साथ ही यजीदी प्रातः तथा सायंकाल के समय सूर्य की ओर मुख करके नमस्कार एवं प्रार्थना करते हैं। हिन्दुओं में भी उदयाचल और अस्ताचल सूर्य को इसी पद्धति से नमस्कार करते हैं।
• यजीदी मंदिर में प्रार्थना करते समय बिंदी, कुमकुम धारण करते हैं। हिन्दू धर्म में भी ऐसी पद्धति प्राचीन काल से है।
• किसी भी मंगल समय पर दीए जलाने की पद्धति येजीदियों में हैं।
• यजीदियों के बर्तनों पर त्रिशूल का चिह्न होता है। उनके वाद्य भी ढोल एवं ताशानुसार होते हैं।