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1. शुरुआत में योग करते समय हमेशा योग विशेषज्ञ के देखरेख में ही योग करे और पूर्णतः प्रशिक्षित होने के बाद ही अकेले योग करे। 2. योग से जुड़ा कोई भी प्रश्न मन में हो तो विशेषज्ञ से जरूर पूछे। 3. योग करना का सबसे बेहतर समय सुबह का होता हैं। सुबह सूर्योदय होने के आधा घंटे पहले से लेकर सूर्योदय होने के 1 घंटे बाद तक का समय विशेष लाभदायक होता हैं। 4. सुबह योग करने से पहले आपका पेट साफ होना आवश्यक हैं। 5. नहाने के 20 मिनिट पहले या बाद में योग नहीं करटे बाद ही करे।

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क्यों है सावन की विशेषता?

हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार सावन महीने को देवों के देव महादेव भगवान शंकर का महीना माना जाता है। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो महादेव भगवान शिव ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया।

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1.14.2023

Makar Sankranti in 2023 जानें तारीख, तिथि और शुभ मुहूर्त

 मकर संक्रांति जानें तारीख, तिथि और शुभ मुहूर्त

मकर संक्रांति के दिन यदि सूर्य देव की पूजा के समय इन मंत्रो 

का जाप किया जाये तो बहुत ही लाभ होता है और मनवांछित फल की प्राप्ति होती है

ॐ सूर्याय नम:,

ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः

ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:

2023 makar sankranti   

जानें तारीख, तिथि और शुभ मुहूर्त

⦿ हिंदू पंचांग के अनुसार, मकर संक्रांति 15 जनवरी, 2023 दिन रविवार को मनाई जाएगी।

⦿ पुण्य काल मुहूर्त : 07:15:13 से 12:30:00 बजे तक

⦿ अवधि : 5 घंटे 14 मिनट

⦿ महापुण्य काल मुहूर्त : 07:15:13 से 09:15:13 बजे तक

⦿ अवधि : पूरे 2 घंटे

⦿ मकर संक्रांति 2023 का समय : 14 जनवरी को 20:21:45

मकर संक्रांति त्यौहार का महत्व

धार्मिक और संस्कृत महत्व :

मकर संक्रांति के पर्व का अत्यधिक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। पुराणों के अनुसार, यह माना जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र, भगवान शनि, जो मकर राशि के स्वामी हैं, से मिलने जाते हैं। यह त्यौहार एक स्वस्थ बंधन का प्रतीक है जो एक पिता और पुत्र के बीच साझा किया जाता है। साथ ही, लोकप्रिय मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति असुरों पर भगवान विष्णु की विजय के प्रति सचेत होने के लिए मनाई जाती है। यह कथा आगे बताती है कि कैसे भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों के सिर काटकर और उन्हें मंदरा पर्वत के नीचे दफन करके उनके द्वारा किए गए संकट को समाप्त कर दिया। इसलिए, अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक है।

1.13.2023

-15 डिग्री तापमान समय तृतीय प्रहर रात्रि 3:00 बजे केदारनाथ धाम में #केदारनाथ_मंदिर

 तृतीय प्रहर रात्रि 3:00 बजे केदारनाथ धाम में 



-15 डिग्री तापमान समय तृतीय प्रहर रात्रि 3:00 बजे केदारनाथ धाम में हो रही बर्फबारी के बीच परमपिता शिव की आराधना में लीन साधु जन जी के दुर्लभ दर्शन है.. इस का नाम है भक्ति जहाँ भक्ति वहाँ शक्ति और जहाँ शक्ति वहाँ शिव भोले भंडारी

आदि शंकराचार्य द्वारा रचित शिव स्तुति

पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम। जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।। महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्। विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।। गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्। भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।। शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्। त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।। परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्। यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।। न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा। न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।। अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्। तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।। नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते। नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।। प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्। शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।। शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्। काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।। त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ। त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।। इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितो वेदसारशिवस्तवः संपूर्णः ॥

शिव पंचाक्षर स्तोत्र अर्थ सहित

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय। नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै न काराय नमः शिवायः॥ अर्थ- जिनके कंठ मे सांपों का हार है, जिनके तीन नेत्र हैं, भस्म ही जिनका अनुलेपन हुआ है और दिशांए ही जिनके वस्त्र हैं, उन अविनाशी महेश्वर 'न' कार स्वरूप शिव को नमस्कार है। श्लोक- मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय। मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै म काराय नमः शिवायः॥ अर्थ- गंगाजल और चंदन से जिनकी अर्चना हुई है, मन्दार के फूल और अन्य पुष्पों से जिनकी सुंदर पूजा हुई है, उन नंदी के अधिपति और प्रमथगणों के स्वामी महेश्वर 'म' कार स्वरूप शिव को नमस्कार है। श्लोक- शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय। श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नमः शिवायः॥ अर्थ- जो कल्याण स्वरूप हैं, पार्वती जी के मुख कमल को प्रसन्न करने के लिए जो सूर्य स्वरूप हैं, जो राजा दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले हैं, जिनकी ध्वजा में बैल का चिन्ह है, उन शोभाशाली श्री नीलकण्ठ 'शि' कार स्वरूप शिव को नमस्कार है। श्लोक- वसिष्ठ कुंभोद्भव गौतमार्य मुनींद्र देवार्चित शेखराय। चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नमः शिवायः॥ अर्थ- वशिष्ठ, अगस्त्य और गौतम आदि श्रेष्ठ ऋषि मुनियों ने तथा इंद्र आदि देवताओं ने, जिनके मस्तक की पूजा की है। चंद्रमा, सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र हैं, उन 'व' कार स्वरूप शिव को नमस्कार है। श्लोक- यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय। दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै य काराय नमः शिवायः॥ अर्थ- यक्षरूप धारण करने वाले, जटाधारी, जिनके हाथ में उनका पिनाक नाम का धनुष है, जो दिव्य सनातन पुरुष हैं, उन दिगम्बर देव 'य' कार स्वरूप शिव को नमस्कार है। पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ। शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

||इति श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रं सम्पूर्णम्||



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