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1. शुरुआत में योग करते समय हमेशा योग विशेषज्ञ के देखरेख में ही योग करे और पूर्णतः प्रशिक्षित होने के बाद ही अकेले योग करे। 2. योग से जुड़ा कोई भी प्रश्न मन में हो तो विशेषज्ञ से जरूर पूछे। 3. योग करना का सबसे बेहतर समय सुबह का होता हैं। सुबह सूर्योदय होने के आधा घंटे पहले से लेकर सूर्योदय होने के 1 घंटे बाद तक का समय विशेष लाभदायक होता हैं। 4. सुबह योग करने से पहले आपका पेट साफ होना आवश्यक हैं। 5. नहाने के 20 मिनिट पहले या बाद में योग नहीं करटे बाद ही करे।

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क्यों है सावन की विशेषता?

हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार सावन महीने को देवों के देव महादेव भगवान शंकर का महीना माना जाता है। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो महादेव भगवान शिव ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया।

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5.20.2019

सुन्नत (खतना) की कुप्रथा पर संत कबीर के विचार । The idea of ​​Saint Kabir on the mischief of Sunnat (circumcision)

             सुन्नत (खतना) की कुप्रथा पर संत कबीर के विचार


संत कबीर जब बालक थे तो उनका खतना करने आये काजी और तमाम मुस्लिम रिश्तेदारों से बालक कबीर का खतना और इस्लामी रीति रिवाजों को लेकर आश्चर्यचकित कर देने वाले कुछ प्रश्न

सुन्नत करवाने से मनाही

                                                                 
The idea of ​​Saint Kabir on the mischief of Sunnat (circumcision)
सुन्नत (खतना) की कुप्रथा पर संत कबीर के विचार

नबी इब्राहिम की चलाई हुई मर्यादा सुन्नत (खतना) हर एक मुसलमान को करनी जरूरी है शरीया अनुसार जब तक सुन्नत न हो कोई मुसलमान नहीं गिना जाता। कबीर जी आठ साल के हो गए। नीरो जी को उनके जान-पहचान वालों ने कहना शुरू कर दिया कि सुन्नत करवाई जाये। सुन्नत पर काफी खर्च किया जाता है। सभी के जोर देने पर आखिर सुन्नत की मर्यादा को पुरा करने के लिए उन्होंने खुले हाथों से सभी सामग्री खरीदी। सभी को खाने का निमँत्रण भेजा। निश्चित दिन पर इस्लाम के मुखी मौलवी और काजी भी एकत्रित हुए। रिश्तेदार और आस पड़ौस के लोग भी हाजिर हुए। सभी की हाजिरी में कबीर जी को काजी के पास लाया गया। काजी कुरान शरीफ की आयतों का उच्चारण अरबी भाषा में करता हुआ उस्तरे को धार लगाने लगा।
• उसकी हरकतें देखकर कबीर जी ने किसी स्याने की भांति उससे पूछा: यह उस्तरा किस लिए है ? आप क्या करने जा रहे हो ?

• तो काजी बोला: 

कबीर ! तेरी सुन्नत होने जा रही है। सुन्नत के बाद तुझे मीठे चावल मिलेंगे और नये कपड़े पहनने को मिलेंगे।
• पर कबीर जी ने फिर काजी से प्रश्न किया। अब मासूम बालक के मुँह से कैसे और क्यों सुनकर काजी का दिल धड़का। क्योंकि उसने कई बालकों की सुन्नत की थी परन्तु प्रश्न तो किसी ने भी नहीं किया, जिस प्रकार से बालक कबीर जी कर रहे थे।

काजी ने प्यार से उत्तर दिया:

 बड़ों द्वारा चलाई गई मर्यादा पर सभी को चलना होता है। सवाल नहीं करते। अगर सुन्नत न हो तो वह मुसलमान नहीं बनता। जो मुसलमान नहीं बनता उसे काफिर कहते हैं और काफिर को बहिशत में स्थान नहीं मिलता और वह दोजक की आग में जलता है। दोजक (नरक) की आग से बचने के लिए यह सुन्नत की जाती है
• यह सुनकर कबीर जी ने एक और सवाल किया: काजी जी ! केवल सुन्नत करने से ही मुसलमान बहिश्त (स्वर्ग) में चले जाते हैं ? क्या उनको नेक काम करने की जरूरत नहीं ?
फिर कबीर दास जी ने काजी से कहाँ

जो तू तुर्क(मुसलमान) तुर्कानी का जाया भी भीतर खतत्न क्यों न कराया।।

अर्थ:-
कबीर दास जी कहते हैं:- हे काजी यदि तू मुस्लिम होने पर अभिमान करता है और कहता है की तुझे अल्लाह ने मुसलमान बनाया है तो तु अपनी माँ के पेट से खतना क्यों नहीं करवा के आया ?
तुझे धरती पर मुसलमान बनने कि जरूरत क्यों पड गई, अल्लाह ने तुझे सिधा मुस्लिम (अर्थात खतना करके) बनाके क्यों नहीं भेजा ?????????
• यह बात सुनकर सभी मुसलमान चुप्पी साधकर कर कभी कबीर जी की तरफ और कभी काजी की तरफ देखने लगे। काजी ने अपने ज्ञान से कबीर जी को बहुत समझाने की कोशिश की, परन्तु कबीर जी ने सुन्नत करने से साफ इन्कार कर दिया। इन्कार को सुनकर लोगों के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई। काजी गुस्से से आग-बबुला हो गया।

• काजी आखों में गुस्से के अँगारे निकालता हुआ बोला: 
The idea of ​​Saint Kabir on the mischief of Sunnat
The idea of ​​Saint Kabir on the mischief of Sunnat (circumcision)


कबीर ! जरूर करनी होगी, राजा का हुक्म है, नहीं तो कौड़े मारे जायेंगे। कबीर जी कुछ नहीं बोले, उन्होंने आँखें बन्द कर लीं और समाधि लगा ली। उनकी समाधि तोड़ने और उन्हें बुलाने का किसी का हौंसला नहीं हुआ, धीरे-धीरे उनके होंठ हिलने लगे और वह बोलने लगे– राम ! राम ! और बाणी उच्चारण की:
हिंदू तुरक कहा ते आए किनि एह राह चलाई ॥
दिल महि सोचि बिचारि कवादे भिसत दोजक किनि पाई ॥१॥
काजी तै कवन कतेब बखानी ॥
पड़्हत गुनत ऐसे सभ मारे किनहूं खबरि न जानी ॥१॥ रहाउ ॥
सकति सनेहु करि सुंनति करीऐ मै न बदउगा भाई ॥
जउ रे खुदाइ मोहि तुरकु करैगा आपन ही कटि जाई ॥२॥
सुंनति कीए तुरकु जे होइगा अउरत का किआ करीऐ ॥
अर्ध सरीरी नारि न छोडै ता ते हिंदू ही रहीऐ ॥३॥
छाडि कतेब रामु भजु बउरे जुलम करत है भारी ॥
कबीरै पकरी टेक राम की तुरक रहे पचिहारी ॥४॥
सन्दर्भ- राग आसा कबीर पृष्ठ 477
अर्थ:-
समझदारों ने समझ लिया कि बालक कबीर जी काजी से कह रहे हैं कि हे काजी: जरा समझ तो सही कि हिन्दू और मुस्लमान कहाँ से आए हैं ? हे काजी तुने कभी यह नहीं सोचा कि स्वर्ग और नरक में कौन जायेगा ?
कौन सी किताब तुने पढ़ी है, तेरे जैसे काजी पढ़ते-पढ़ते हुए ही मर गए पर परमात्मा के दर्शन उन्हें नहीं हुए। रिशतेदारों को इक्कठे करके सुन्नत करना चाहते हो, मैंने कभी भी सुन्नत नहीं करवानी। अगर मेरे खुदा को मुझे मुसलमान बनाना होगा तो मेरी सुन्नत अपने आप हो जायेगी।
हे काजी अगर मैं तेरी बात मान भी लूँ कि मर्द ने सुन्नत कर ली और वह स्वर्ग में चला गया तो स्त्री का क्या करोगे ? अगर स्त्री यानि जीवन साथी ने काफिर ही रहना है तो फिर तो हिन्दू ही होना अच्छा है।
मैं तो तुझे कहता हूँ कि यह किताबे आदि छोड़कर केवल राम नाम का सिमरन कर। मैंने तो राम का आसरा लिया है इसलिए मुझे कोई चिन्ता फिक्र नहीं |

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The idea of ​​Saint Kabir on the mischief of Sunnat (circumcision)


When Kabir was a child, he came to circumcise Kaji and all the Muslim relatives, some questions that surprised Baba Kabbir's circumcision and Islamic customs
.
Forbidden Sunnah
SANT KABIR
surprised Baba Kabbir's circumcision and Islamic customs

It is necessary for every Muslim to perform the exemplary limit of Prophets Ibrahim, according to the Shari according to the Sunnah, no Muslim can be counted. Kabir ji was eight years old. Niro started to say that his life-watchers started doing Sunnah. Sunnah is spent quite a lot. After all the emphasis was given, they bought all the materials with open hands to complete the order of Sunnah. Invited everyone to a meal. On the definite day, Maulvi and Qazi, the chiefs of Islam also gathered. Relatives and people from neighboring neighborhood were also present. Kabir ji was brought to Kazi in the presence of everyone. In the Arabic language, the pronunciation of the rectangles of Kazi Koran Sharif started to penetrate.
• Seeing his actions Kabir ji asked him like this: What is this razor? What are you going to do
• He said kazi: Kabir! It's going to be your Sunnah. After Sunnah, you will get sweet rice and you will get to wear new clothes.
• Kabir ji again questioned Qazi. Now, how and why listening to the innocent child's face triggered Kaji's heart. Because he had circumcised many children, but no one has questioned the way the child was doing Kabir.
• Qazi responded with love: everyone has to walk on the limit set by the elders. Do not question. If not Sunnah, then it is not a Muslim. The person who does not become a Muslim is called a Kafir and the Kafir does not get a place in the exterior and he burns in the fire of Dajak. This Sunnah is done to avoid the fire of hell (hell)
• After hearing this, Kabir ji asked another question: Kaji ji! Only by doing Sunnah do Muslims go to Bahursh (Paradise)? Do not they need to do good work?
Then Kabir Das ji from Kaji
Why did you not go to Turkey (Muslim) Turkani, why did not you eat it?
meaning:-
Kabir Das says: - O Kaji, if you are proud of being a Muslim and say that Allah has made you a Muslim, why did not you come to circumcise your mother's stomach?
Why did you need to become a Muslim on earth, why did not Allah send you straightforward Muslim (ie circumcision)?
• By listening to this, all Muslims did silence and looked towards Kabir and sometimes looked towards Kazi. Qazi tried to explain Kabir ji a lot with his knowledge, but Kabir ji refused to do Sunnah. Hearing the denial, the ground beneath the feet of people fell apart. Kazi was furious with anger.
• In the eyes of angered by anger, Kabir said: Of course, the king's order is to be done, otherwise he will be killed. Kabir ji did not say anything, he closed his eyes and took the tomb. No one was invited to break their tomb and call him, slowly his lips started moving and he began to speak- Ram! RAM ! And 

the words of the Bani:

The Hindu Turak said that it came as it came.
I do not know what the hell is going on.
Qazi Taa Kwaan Kateb Bakhani
Do not know what to do, do not know. Rahu
I will not do anything, I will not stop brother
Jau rai khudai mohi takku karega ke liye.
Suneeti Kee Taaruku J Hoiga Aurat Kiya Kiya Kiya
The half-dead woman did not want to remain Hindu.
Chaddi kateb raamu bhaju bore is doing tremendous heavy
Kabirai Pakri Tech Ram's Torkar Pachihari .4.
References - Raag Asa Kabir Pg 477

Saint Kabir on the mischief of Sunnat (circumcision)
The idea of ​​Saint Kabir on the mischief of Sunnat (circumcision)

meaning:-

The wise people have understood that Kabir Ji is telling the child that O Kazi: Just understand that where are the Hindus and the Muslims coming from? O Kazi, you never thought that who will go to heaven and hell?
Which book you have read, like you read Kaji as soon as you were studying, but the philosophy of God was not theirs. I want to circumvent the relatives by referring to them, I have never been circumcised. If my God has to make me a Muslim then my Sunnah will be done automatically.
If I accept your opinion, then what should the woman do when the man has sunk and he goes to heaven? If the woman, the wife of a spouse is to be a disbeliever then it is good to be a Hindu.
I tell you that leaving this book so much else, Simran just name Ram. I have taken shelter of Rama so I do not care about any anxiety.
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कर्ज वाली लक्ष्मी ना कोई विदा करें नही कोई स्वीकार करे | Dahej Ki Beti


कर्ज वाली लक्ष्मी ना कोई विदा करें नही कोई स्वीकार करे

एक 15 साल का भाई अपने पापा से कहा "पापा पापा दीदी के होने वाले ससुर और सास कल आ रहे है" अभी जीजाजी ने फोन पर बताया। 
कर्ज वाली लक्ष्मी ना कोई विदा करें नही कोई स्वीकार करे | Dahej Ki Beti

          कर्ज वाली लक्ष्मी

दीदी मतलब उसकी बड़ी बहन की सगाई कुछ दिन पहले एक अच्छे घर में तय हुई थी।
दीनदयाल जी पहले से ही उदास बैठे थे धीरे से बोले...
हां बेटा.. उनका कल ही फोन आया था कि वो एक दो दिन में दहेज की बात करने आ रहे हैं.. बोले... दहेज के बारे में आप से ज़रूरी बात करनी है..
बड़ी मुश्किल से यह अच्छा लड़का मिला था.. कल को उनकी दहेज की मांग इतनी ज़्यादा हो कि मैं पूरी नही कर पाया तो ?"
कहते कहते उनकी आँखें भर आयीं..
घर के प्रत्येक सदस्य के मन व चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी...लड़की भी उदास हो गयी...
खैर..
अगले दिन समधी समधिन आए.. उनकी खूब आवभगत की गयी..
कुछ देर बैठने के बाद लड़के के पिता ने लड़की के पिता से कहा" दीनदयाल जी अब काम की बात हो जाए..
दीनदयाल जी की धड़कन बढ़ गयी.. बोले.. हां हां.. समधी जी.. जो आप हुकुम करें..
लड़के के पिताजी ने धीरे से अपनी कुर्सी दीनदयाल जी और खिसकाई ओर धीरे से उनके कान में बोले. दीनदयाल जी मुझे दहेज के बारे बात करनी है!...
दीनदयाल जी हाथ जोड़ते हुये आँखों में पानी लिए हुए बोले बताईए समधी जी....जो आप को उचित लगे.. मैं पूरी कोशिश करूंगा..
समधी जी ने धीरे से दीनदयाल जी का हाथ अपने हाथों से दबाते हुये बस इतना ही कहा.....
दहेज हटाओ बेटी बचाओ
आप कन्यादान में कुछ भी देगें या ना भी देंगे... थोड़ा देंगे या ज़्यादा देंगे.. मुझे सब स्वीकार है... पर कर्ज लेकर आप एक रुपया भी दहेज मत देना.. वो मुझे स्वीकार नहीं..
क्योकि जो बेटी अपने बाप को कर्ज में डुबो दे वैसी "कर्ज वाली लक्ष्मी" मुझे स्वीकार नही...
मुझे बिना कर्ज वाली बहू ही चाहिए.. जो मेरे यहाँ आकर मेरी सम्पति को दो गुना कर देगी..
दीनदयाल जी हैरान हो गए.. उनसे गले मिलकर बोले.. समधी जी बिल्कुल ऐसा ही होगा..
कर्ज वाली लक्ष्मी ना कोई विदा करें नही कोई स्वीकार करे | Dahej Ki Beti

           कर्ज वाली लक्ष्मी

शिक्षा- * कर्ज वाली लक्ष्मी ना कोई विदा करें नही कोई स्वीकार करे* ..
यह कहानी मेरी नहीं है, मैं यह भी नहीं जानता की यह किसने और कब लिखी है l आपको पसंद आये तो सारी दुआए उनके लिए ही होंगी जिन्होंने यह दिल से कागज पर उतारी है I
🙏🏻

*****************************IN English STORY***********************************

Do not give any money to Lakshmi

A 15-year-old brother said to his father "Papa Papi Didi's father-in-law and mother-in-law are coming tomorrow," he said on the phone.

Sister means that the engagement of his elder sister was fixed in a good house a few days ago.

Deendayal ji was already depressed and said softly ...

Yes son .. They had just called the call yesterday that they are coming to talk about dowry in a couple of days .. say ... you have to talk to you about dowry urgently ..

It was difficult to get this good boy. Tomorrow his demand for dowry is so much that if I can not fulfill it? "

His eyes filled his eyes.

Concerns on the mind and face of each member of the house were clearly visible ... the girl became sad ...

Well ..

The next day Samadhi came ... He was very much appreciated ..


After sitting for a while, the boy's father told the girl's father, "Deindayal ji should be talking about work now.

Deendayal ji's beating increased .. say .. yes yes .. samadh ji .. what you order ..

The boy's father slowly dumped his chair and slammed his tongue in his ear. Deindayal ji, I want to talk about dowry! ...

Deindayal ji, adding the hand to the eyes, said, "Samadhi ji, who used to take water in the water ....

Samadhi ji slowly pressed the hand of Deendayal ji with his hand and said just that .....

Save dowry dear daughter


You will not give anything in Kanyadan or not ... Give or give more .. I accept all ... but do not give dowry to one rupee even with a loan .. They do not accept me ..

Because the daughter who dips her father into debt, I do not accept the "loaned laxmi" ...

I need a daughter-in-law without debt ... who will double my assets by coming here.

Deindayal ji got surprised .. talk to him with his throat .. Samadhi ji will be exactly like this ..

Education- * Laxmi, who has no debt, please do not send any. *


This story is not mine, I do not even know who and when it is written. If you like, all the prayers will be for those who have brought it on paper with heart.

🙏🏻

आज का पंचांग

🌞 ~ *आज का हिन्दू पंचांग* ~ 🌞
⛅ *दिनांक 20 मई 2019*
⛅ *दिन - सोमवार*
⛅ *विक्रम संवत - 2076 (गुजरात. 2075)*
⛅ *शक संवत -1941*
⛅ *अयन - उत्तरायण*
⛅ *ऋतु - ग्रीष्म*
⛅ *मास - ज्येष्ठ (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार - वैशाख)*
⛅ *पक्ष - कृष्ण*
⛅ *तिथि - द्वितीया 21 मई रात्रि 01:21 तक तत्पश्चात तृतीया*
⛅ *नक्षत्र - ज्येष्ठा 21 मई प्रातः 02:30 तक तत्पश्चात मूल*
⛅ *योग - शिव शाम 11:31तक तत्पश्चात सिद्ध*
⛅ *राहुकाल - सुबह 07:27 से सुबह 09:06 तक*
⛅ *सूर्योदय - 06:00*
⛅ *सूर्यास्त - 19:10*
⛅ *दिशाशूल - पूर्व दिशा में*
⛅ *व्रत पर्व विवरण -
💥 *विशेष - द्वितीया को बृहती (छोटा बैंगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
               🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞

🌷 *गर्मी की बीमारियों की जड़ें काटनेवाला है पेठा* 🌷
🍈 *पका हुआ पेठा त्रिदोषशामक, विशेषत:  पित्तशामक है | गर्मी से जो बीमारियाँ होती हैं  यह उन सबकी जड़ें काटता है |*
🚶🏻 *पेठा थकान तो मिटाता है, साथ में नींद भी अच्छी लाता है | पका पेठा अमृत के समान है | पेठे के बीज भी बादाम के समान गुणकारी हैं  |*
          🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞

🌷 *परेशानियां दूर करने के लिए* 🌷
🙏🏻 *शिवपुराण के अनुसार शिवजी की इच्छा से ही इस संपूर्ण सृष्टि की रचना ब्रह्माजी ने की है और इसका पालन भगवान विष्णु कर रहे हैं। इसलिए शिवजी की पूजा से बड़ी-बड़ी परेशानियां भी दूर हो सकती हैं। सोमवार शिवजी की पूजा के लिए  श्रेष्ठ दिन माना जाता है। यहां जानिए ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शिव पूजा के 10 उपाय। इनमें से कोई 1 भी हर सोमवार को करेंगे तो शिवजी की कृपा से  आपकी सभी परेशानियां दूर हो सकती हैं...*
1⃣ *अगर किसी व्यक्ति की शादी में बाधाएं आ रही हैं तो शिवलिंग पर केसर मिला कर दूध चढ़ाएं। माता पार्वती की भी पूजा करें।*
2⃣ *मछलियों को आटे की गोलियां खिलाएं। इस दौरान ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जप करें। ये उपाय सोमवार से शुरू करें और इसके बाद रोज करें। इससे बुरा समय दूर हो सकता है।*
3⃣ *21 बिल्व पत्रों पर चंदन से ऊँ नम: शिवाय लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। इससे शिवजी की कृपा मिलती है।*
4⃣ *शिवजी के वाहन नंदी यानी बैल को हरा चारा खिलाएं। इससे जीवन में सुख-समृद्धि बढ़ती है और परेशानियाँ खत्म होती हैं।*
5⃣ *अपने सामर्थ्य के अनुसार गरीबों को भोजन कराएं, इससे आपके घर में कभी अन्न की कमी नहीं होगी। साथ ही पितरों की आत्मा को शांति मिलेगी।*
6⃣ *तांबे के लोटे में पानी लेकर काले तिल मिलाएं और शिवलिंग पर चढ़ाएं। ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जप करें। इससे शनि के दोष दूर होते हैं।*
7⃣ *घर में पारद शिवलिंग लेकर आए और रोज इस शिवलिंग की पूजा करें। इससे आपकी आमदनी बढ़ाने के योग बन सकते हैं।*
8⃣ *आटे से 11 शिवलिंग बनाएं। 11 बार इनका जलाभिषेक करें। इस उपाय से संतान प्राप्ति के योग बनते हैं।*
9⃣ *शिवलिंग पर शुद्ध घी चढ़ाएं। फिर जल चढ़ाएं। इससे संतान संबंधी परेशानियां दूर हो सकती हैं।*
1⃣0⃣ *भगवान शिव का अभिषेक करें। ऊँ नमः शिवाय मंत्र जप करें। शाम को शिव मंदिर में 11 घी के दीपक जलाए।*
          🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞
🙏🏻🌷💐🌸🌼🌹🍀🌺💐🙏🏻

5.18.2019

आज का हिन्दू पंचांग हिन्ददी में | aaj ka punchang

          आज का हिन्दू पंचांग

आज का हिन्दू पंचांग
आज का पंचांग


🌞 ~ *आज का हिन्दू पंचांग* ~ 🌞

⛅ *दिनांक 19 मई 2019*
⛅ *दिन - रविवार* 
⛅ *विक्रम संवत - 2076 (गुजरात. 2075)*
⛅ *शक संवत -1941*
⛅ *अयन - उत्तरायण*
⛅ *ऋतु - ग्रीष्म*
⛅ *मास - ज्येष्ठ (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार - वैशाख)*
⛅ *पक्ष - कृष्ण* 
⛅ *तिथि - प्रतिपदा 20 मई रात्रि 01:43 तक तत्पश्चात द्वितीया*
⛅ *नक्षत्र - अनुराधा 20 मई प्रातः 02:08 तक तत्पश्चात ज्येष्ठा*
⛅ *योग - परिघ शाम 01:08 तत्पश्चात शिव*
⛅ *राहुकाल - शाम 05:20 से शाम 06:59 तक* 
⛅ *सूर्योदय - 06:00*
⛅ *सूर्यास्त - 19:09* 
⛅ *दिशाशूल - पश्चिम दिशा में*
⛅ *व्रत पर्व विवरण - देवर्षि नारदजी जयंती*
💥 *विशेष - प्रतिपदा को कूष्माण्ड(कुम्हड़ा, पेठा) न खाये, क्योंकि यह धन का नाश करने वाला है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
💥 *रविवार के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*
💥 *रविवार के दिन मसूर की दाल, अदरक और लाल रंग का साग नहीं खाना चाहिए।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75.90)*
💥 *रविवार के दिन काँसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75)*
💥 *स्कंद पुराण के अनुसार रविवार के दिन बिल्ववृक्ष का पूजन करना चाहिए। इससे ब्रह्महत्या आदि महापाप भी नष्ट हो जाते हैं।*

               🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞


🌷 *सौभाग्य-रक्षा और सुख-शांति व समृद्धि बढ़ाने हेतु* 🌷
👩🏻 *माताएँ-बहनें रोज स्नान के बाद पार्वती माता का स्मरण करते-करते उत्तर दिशा की ओर मुख करके तिलक करें और पार्वती माता को इस मंत्र से वंदन करें :*
🌷 *“ॐ ह्रीं गौर्यै नम: |”*
👩🏻 *इससे माताओं –बहनों के सौभाग्य की रक्षा होगी तथा घर में सुख-शांति और समृद्धि बढ़ेगी |*
          🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞
आज का हिन्दू पंचांग
आज का पंचांग

🌷 *ज्येष्ठ मास* 🌷
🙏🏻 *महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 106 के अनुसार “ज्येष्ठामूलं तु यो मासमेकभक्तेन संक्षिपेत्। ऐश्वर्यमतुलं श्रेष्ठं पुमान्स्त्री वा प्रपद्यते।।” जो एक समय ही भोजन करके ज्येष्ठ मास को बिताता है वह स्त्री हो या पुरुष, अनुपम श्रेष्ठ एश्‍वर्य को प्राप्त होता है।*
🙏🏻 *शिवपुराण के अनुसार ज्येष्ठ में तिल का दान बलवर्धक और मृत्युनिवारक होता है।*
🙏🏻 *ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन मूल नक्षत्र होने पर मथुरा में स्नान करके विधिवत् व्रत-उपवास करके भगवान कृष्ण की पूजा उपासना करते हुए श्री नारद पुराण का श्रवण करें तो भक्ति जन्म-जन्मान्तरों के पाप से मुक्त हो जाता है। माया के जाल से मुक्त होकर निरंजन हो जाता है। भगवान् विष्णु के चरणों में वृत्ति रखने वाला संसार के प्रति अनासक्त होकर फलस्वरूप जीव मुक्ति को प्राप्त करता हुआ वैकुंठ वासी हो जाता है।*
🙏🏻 *धर्मसिन्धु के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को तिलों के दान से अश्वमेध यज्ञ का फल होता है।*
🙏🏻 *ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को अपरा एकादशी का व्रत किया जाता है।*
🙏🏻 *ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को शनि जयंती मनाई जाती है।  शास्त्रों के अनुसार शनि देव जी का जन्म ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को रात के समय हुआ था।*
🙏🏻 *ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को गंगा दशहरा का पवित्र त्यौहार मनाया जाता है।*
🙏🏻 *ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी का व्रत किया जाता है।*
🙏🏻 *महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 109 के अनुसार ज्येष्ठ मास की द्वादशी तिथि को दिन-रात उपवास करके जो भगवान त्रिविक्रम की पूजा करता है, वह गोमेध यज्ञ का फल पाता और अप्सराओं के साथ आनन्द भोगता है ।*

🌷 *विष्णुपुराण के अनुसार*

*यमुनासलिले स्त्रातः पुरुषो* *मुनिसत्तम!*
*ज्येष्ठामूलेऽमले पक्षे द्रादश्यामुपवासकृत् ।। ६-८-३३ ।।*
*तमभ्यर्च्च्याच्युतं संम्यङू मथुरायां समाहितः ।*
*अश्वमेधस्य यज्ञस्य प्राप्तोत्यविकलं फलम् ।। ६-८-३४ ।।*
🙏🏻 *ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी को मथुरापुरी में उपवास करते हुए यमुना स्नान करके समाहितचित से श्रीअच्युत का भलीप्रकार पूजन करने से मनुष्य को अश्वमेध-यज्ञ का सम्पूर्ण फल मिलता है।*
          🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞
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hindi katha | सांसारिक भोग व संबंध अनित्य है | bhagvan budha Story

🌷 *सांसारिक भोग व संबंध अनित्य है।* 🌷💐

🌅भगवान बुद्ध की एक भिक्षुणी शिष्या थी । उसका नाम था पटाचारा । त्रिपिटक ग्रंथ में उसकी कथा आती है । पटाचारा कुँआरी थी । किसी युवान से उसका मन लग गया । माँ-बाप के न चाहने पर भी उसने उसके साथ शादी कर ली । श्रावस्ती नगरी से बहुत दूर देश में वह अपने पति के साथ रहने लगी ।
bhagvan budha story

★ कालचक्र घुमता गया । वह दो बच्चों की माता हुई । काफी वर्ष गुजरने पर पटाचारा के मन में हुआ कि कुछ भी हो, आखिर माँ-बाप बूढे हो गये होंगे, अब मैं अपने परिवार के जनों से मिलूँ । उन माँ-बाप को रिझा लूँ… मना लूँ ।

★ पटाचारा अपने पति और दो बेटों के साथ चली श्रावस्ती नगरी की ओर । आज से २५०० साल पहले की बात है । गाडी मोटरों की सुविधा न थी । लोग पैदल चलते थे । यात्रा करते करते ये लोग घने जंगल से गुजर रहे थे । रात्रि में पति ने शयन किया और साँप ने उसे काटा । पति मर गया । पटाचारा के सिर परमानो एक दुःख का पहाड गिर पडा ।

★ इतना ही नहीं, रात्रि को तो पति की मृत्यु देख रही है और प्रभात में पुत्र को किसी हिंसक प्राणी ने झपट लिया । वह मौत के घाट उतर गया । अब वह एकलौते बेटे को देख कर मुश्किल से संभल रही है । प्यास के मारे दूसरा बेटा पानी खोजने गया । वह झाड़ियों में उलझ गया और खप गया ।

★ अब अकेली नारी पटाचारा अपने को जैसे तैसे संभालती हुई, रास्ता काटती हुई, कंकडों पत्थरों पर पैर जमाती हुई, दिल को थामती हुई, मनको समझाती हुई मांँ-बाप के दीदार के लिए भागी जा रही है । वह अबला श्रावस्ती नगरी में पहुँचती है तो खबर सुनती है कि जोरों की आँधी चली उसमें उसका मकान गिर गया और बूढे माँ-बाप उसके नीचे दबकर मर गये । पटाचारा के पैरों तले से मानो धरती खिसक रही है । है तो बडी दुःखद घटना मगर ईश्वर न जाने इस दुःख के पीछे कितना सुख देना चाहता है यह पटाचारा को पता न था ।

★ संसार का मोह छुडाकर शाश्वत की ओर ले जानेवाली ईश्वर-कृपा न जाने किस व्यक्ति को किस ढंग की व्यवस्था करके उसे उन्नत करना चाहती है ।
पटाचारा के मन में हुआ कि : ‘आखिर यह क्या ? जिस पति के लिये माँ-बाप छोडे उस पतिको साँप ने डँस मारा, वह चल बसा । बेटों को सम्भाला, पाला-पोसा, बडे होंगे तो सुख देंगे यह अरमान किये । एक बेटे को हिंसक पशु उठाकर ले गया । दूसरा बेटा गायब हो गया । इतना सब दुःख सहते सहते माँ-बाप के लिए आयी, वहाँ के झोंके ने मकान गिरा दिया और वे माँ-बाप दब मरे । क्या यही है जीवन ? क्या यही है हमारे मानव जन्म की उपलब्धि ? पटाचारा की अशांति और मीमांसा दोनों शुरू हुई । वह बुद्ध के पास पहुँची । पटाचारा से बुद्ध ने कहा : ‘‘पटाचारा ! जो कुछ होता है, जीव की उन्नति के लिए, विकास के लिए होता है । तेरे दो पुत्र इस जन्म में तेरे पुत्र थे परंतु न जाने कितनी बार और कितनों के पुत्र हुये और अभी न जाने वे किसकी कोख में होंगे तुझे क्या पता ? तेरा पति इस जन्म में तेरा पति था परंतु करोडों बार न जाने कितनों का पति बना होगा ? पटाचारा ! तू इस जन्म में इस माँ-बाप की बेटी थी, परंतु अगले जन्म के तेरे कौन माँ-बाप हुये होंगे ? कितने माँ-बाप बदल गये होंगे यह तुझे पता नहीं । शायद वह पता दिलाने के लिए परमात्मा ने यह व्यवस्था की हो ।

★ जगत की नश्वरता समझाते हुये बुद्ध ने पटाचारा को उपदेश दिया । पटाचारा ऐसी भिक्षुणी बनी कि उसने एक बार महिलाओं के बीच प्रवचन किया और उसी एक प्रवचन से प्रभावित होकर पाँच सौ महिलायेंँ साध्वी हो गयीं । कहाँ तो जीवन की इतनी भीषण दुःखद अवस्था और कहाँ बुद्ध का मिलना और वह ऐसी भिक्षुणी हो गयी कि पाँच सौ महिलायेंँ एक साथ भिक्षुणी बन पडी । अभी सत्संग में उसकी चर्चा होती है ।

★ *हम समीक्षा करेंगे तो पता चलेगा कि हर दुःख के पीछे कोई नया सुख छिपा है और सुख के पीछे दुःख छिपा है । हम इतने अनजान हैं कि दुःख के भय से दुःखी होते रहते हैं और सुख में लेपायमान होते रहते हैं । सुख और दुःख की अगर ठीक से समीक्षा करेंगे तो ये सुख और दुःख दोनों हमें जगाने का काम करेंगे ।*

   🍁💦🙏Զเधे👣Զเधे🙏🏻💦🍁
*☘🌷!! हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !!💖*
      *☘💞हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे !!🌹💐*
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आखिर किस मुँह से हम भारतीय चंद्रशेखर आज़ाद को श्रधांजलि दे - After all, we can pay tribute to Indian Chandrasekhar Azad.

आखिर किस मुँह से हम भारतीय चंद्रशेखर आज़ाद को श्रधांजलि दे...!!!

After all, we can pay tribute to Indian Chandrasekhar Azad.

चंद्रशेखर आज़ाद को श्रधांजलि


अरे बुढिया तू यहाँ न आया कर, तेरा बेटा तो चोर-डाकू था। इसीलिए गोरों ने उसे मार दिया। जंगल में लकड़ी बीन रही एक मैली सी धोती में लिपटी बुजुर्ग  महिला से वहां खड़ें भील ने हंसते हुए कहा।

नही चंदू ने आजादी के लिए कुर्बानी दी हैं, बुजुर्ग औरत ने गर्व से कहा।
चंद्रशेखर आज़ाद
उस बुजुर्ग औरत का नाम जगरानी देवी था। इन्होने पांच बेटों को जन्म दिया था, जिसमे आखरी बेटा कुछ दिन पहले ही शहीद हुआ था। उस बेटे को ये माँ प्यार से  चंदू  कहती थी और दुनियां उसे “आजाद“ जी हां चंद्रशेखर आजाद के नाम से जानती है।
chandra sekhar aajad
आखिर किस मुँह से हम भारतीय चंद्रशेखर आज़ाद को श्रधांजलि दे

हिंदुस्तान आजाद हो चुका था, आजाद के मित्र सदाशिव राव एक दिन आजाद के माँ-पिता जी की खोज करते हुये उनके गाँव पहुंचे। आजादी तो मिल गयी थी लेकिन बहुत कुछ खत्म हो चुका था। चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत के कुछ वर्षों बाद उनके पिता जी की भी मृत्यु हो गयी थी।


आज़ाद के भाई की मृत्यु 


भी इससे पहले ही हो चुकी थी। अत्यंत निर्धनावस्था में हुई उनके पिता की मृत्यु के पश्चात आज़ाद की निर्धन निराश्रित वृद्ध माताश्री उस वृद्धावस्था में भी किसी के आगे हाथ फ़ैलाने के बजाय जंगलों में जाकर लकड़ी और गोबर बीनकर लाती थी तथा कंडे और लकड़ी बेचकर अपना पेट पालती रहीं। लेकिन वृद्ध होने के कारण इतना काम नहीं कर पाती थीं कि भरपेट भोजन का प्रबंध कर सकें। कभी ज्वार कभी बाज़रा खरीद कर उसका घोल बनाकर पीती थीं। क्योंकि दाल चावल गेंहू और उसे पकाने का ईंधन खरीदने लायक धन कमाने की शारीरिक सामर्थ्य उनमे शेष ही नहीं था।
शर्मनाक बात तो यह कि उनकी यह स्थिति देश को आज़ादी मिलने के 2 वर्ष बाद (1949) तक जारी रही।

चंद्रशेखर आज़ाद जी को दिये गये अपने एक वचन का वास्ता देकर सदाशिव जी उन्हें अपने साथ अपने घर झाँसी लेकर आये थे, क्योंकि उनकी स्वयं की स्थिति अत्यंत जर्जर होने के कारण उनका घर बहुत छोटा था। अतः उन्होंने आज़ाद के ही एक अन्य मित्र भगवान दास माहौर के घर पर आज़ाद की माताश्री के रहने का प्रबंध किया था और उनके अंतिम क्षणों तक उनकी सेवा की।

आजाद की माँ जगरानी देवी का निधन

मार्च 1951  में जब आजाद की माँ जगरानी देवी का झांसी में निधन हुआ तब सदाशिव जी ने उनका सम्मान अपनी माँ के समान करते हुए उनका अंतिम संस्कार स्वयं अपने हाथों से ही किया था।

 आज़ाद की माताश्री के देहांत के पश्चात झाँसी की जनता ने उनकी स्मृति में उनके नाम से एक सार्वजनिक स्थान पर पीठ का निर्माण किया। प्रदेश की तत्कालीन सरकार (प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री थे गोविन्द बल्लभ पन्त) ने इस निर्माण को झाँसी की जनता द्वारा किया हुआ अवैध और गैरकानूनी कार्य घोषित कर दिया। किन्तु झाँसी के  नागरिकों ने तत्कालीन सरकार के उस शासनादेश को महत्व न देते हुए चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापित करने का फैसला कर लिया।

मूर्ति बनाने का कार्य चंद्रशेखर आजाद के ख़ास सहयोगी कुशल शिल्पकार रूद्र नारायण सिंह जी को सौपा गया। उन्होंने फोटो को देखकर आज़ाद की माताश्री के चेहरे की प्रतिमा तैयार कर दी।

जब सरकार को यह पता चला कि आजाद की माँ की मूर्ति तैयार की जा चुकी है और सदाशिव राव, रूपनारायण, भगवान् दास माहौर समेत कई क्रांतिकारी झांसी की जनता के सहयोग से मूर्ती को स्थापित करने जा रहे है तो उसने अमर बलिदानी चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापना को देश, समाज और झाँसी की कानून व्यवस्था के लिए खतरा घोषित कर उनकी मूर्ति स्थापना के कार्यक्रम को प्रतिबंधित कर पूरे झाँसी शहर में कर्फ्यू लगा दिया। चप्पे चप्पे पर पुलिस तैनात कर दी गई ताकि अमर बलिदानी चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति की स्थापना ना की जा सके।

जनता और क्रन्तिकारी आजाद

आखिर किस मुँह से हम भारतीय चंद्रशेखर आज़ाद को श्रधांजलि दे - After all, we can pay tribute to Indian Chandrasekhar Azad.
आजाद हम आपको कौन से मुंह से श्रद्धांजलि दें

जनता और क्रन्तिकारी आजाद की माता की प्रतिमा लगाने के लिए निकल पड़ें। अपने आदेश की झाँसी की सडकों पर बुरी तरह उड़ती धज्जियों से तिलमिलाई तत्कालीन  सरकार ने अपनी पुलिस को सदाशिव  को गोली मार देने का आदेश दे डाला, किन्तु आज़ाद की माताश्री की प्रतिमा को अपने सिर पर रखकर पीठ की तरफ बढ़ रहे सदाशिव  को जनता ने चारों तरफ से अपने घेरे में ले लिया। जुलूस पर पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया। सैकड़ों लोग घायल हुए, दर्जनों लोग जीवन भर के लिए अपंग हुए और कुछ  लोग की मौत भी हुईं (मौत की पुष्टि नही हुईं )। चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापित नहीं हो सकी।

आजाद हम आपको कौन से मुंह से श्रद्धांजलि दें। आज जब हम आपकी माताश्री की 2-3 फुट की मूर्ति के लिए उस देश में 5 फुट जमीन भी हम न दे सकें  जिस देश के लिए आप ने अपने प्राण न्योछावर कर दिये थे।

अपनी वासनाओं के साथ पेश आने का तरीका - इच्छाओं को सही दिशा दें - How to deal with your lust

                                How to deal with your lust ?


अगर आप अपने जीवन का लक्ष्य तय कर लेते हैं, फिर आप कुछ खोएंगे नहीं। हरेक व्यक्ति के अंदर प्रवृत्तियाँ मौजूद हैं।
अपनी वासनाओं के साथ पेश आने का तरीका -   How to deal with your lust
How to deal with your lust

आप के ऊपर पूर्व कर्मों का प्रभाव है, वे आपको इधर-उधर ढकेलते हैं। अपनी सारी इच्छाओं और वासनाओं से आप लड़ नहीं सकते।
 अपनी इच्छाओं और वासनाओं के साथ कभी लड़ने का प्रयास भी मत कीजियेगा। उनके साथ लडऩा महिषासुर राक्षस से लडऩे जैसा है। अगर उसके खून की एक बूँद गिरती है, तो हज़ारों महिषासुर उठ खड़े होंगें।

 आपकी इच्छाएँ और वासनाएँ ठीक वैसी ही हैं। अगर आप उनसे लडऩे की कोशिश करेंगे, अगर आप उन्हें काटेंगे तो उनसे खून बहेगा और हर बूंद से सैंकड़ों-हज़ारों पैदा हो जाएँगी।
 उनसे लडऩे से कोई फायदा नहीं। बस अपनी वासनाओं को शिक्षित करें, अपनी वासनाओं को सही दिशा में बहने की शिक्षा दें, सिर्फ इतना ही।

#इच्छाओं को सही दिशा दें


जीवन में सिर्फ सर्वोच्च की इच्छा करें। अपनी सभी वासनाओं को सर्वोच्च की ओर मोड़ दें। अगर आप क्रोध भी करते हैं, उसे भी सर्वोच्च की दिशा में लगाएँ।
आपकी ऊर्जा का हरेक अंश, आपकी हरेक आकांक्षा, भावना, विचार यदि सभी एक दिशा में केन्द्रित हो जाएँ तो परिणाम बहुत शीघ्र मिलेगा। चीज़ें घटित होंगी।
अपनी वासनाओं के साथ पेश आने का भी यही तरीका है। ऊर्जा का हर अंश जो अभी आपके पास है, उसे आप इच्छा, वासना, भय, क्रोध तथा कई दूसरी चीज़ों में खर्च कर देते हैं।
हो सकता है ये भावनाएँ अभी आपके हाथ में न हों, लेकिन इन्हें एक दिशा देना आपके हाथ में है। हो सकता है जब आप क्रोध में हैं, आप प्रेम नहीं कर सकते; आप अचानक अपने क्रोध को प्रेम में नहीं बदल सकते लेकिन स्वयं क्रोध को तो मोड़ा जा सकता है।
 क्रोध बहुत बड़ी ऊर्जा है, है कि नहीं? उसे सही दिशा दीजिये, बस। आपकी ऊर्जा का हरेक अंश, आपकी हरेक आकांक्षा, भावना, विचार यदि सभी एक दिशा में केन्द्रित हो जाएँ तो परिणाम बहुत शीघ्र मिलेगा।
 चीज़ें घटित होंगी। एक बार जब आप जान लेते हैं कि कुछ बेहतरीन है और आप वहाँ पँहुचना चाहते हैं, फिर उस संबंध में कोई प्रश्न नहीं होना चाहिए।

#आधी अधूरी कोशिशों से आत्मज्ञान नहीं मिल सकता

अपनी वासनाओं के साथ पेश आने का तरीका - इच्छाओं को सही दिशा दें -   How to deal with your lust

आधी अधूरी कोशिशों से आत्मज्ञान नहीं मिल सकता


अब, आपके साथ यह बार-बार हो रहा है - यह आध्यात्मिकता, आत्मज्ञान, ईश्वर-साक्षात्कार बहुत दूर दिखाई देता है। एक क्षण के लिए यह बहुत करीब तो दूसरे ही क्षण करोड़ों मील दूर दिखाई देता है।

यह जान लें कि जो सहज है, ज़रूरी नहीं कि वो आसान भी हो। यह बहुत सूक्ष्म और नाजुक है। जब तक कि आप अपनी पूरी जीवन-ऊर्जा इसमें नहीं लगा देते,


फिर एक खास तरह की संतुष्टि आ जाती है। 

आपको हमेशा यह सिखाया गया है कि हाथ में आई एक चिडिय़ा झाड़ी पर बैठी दो चिडिय़ों से ज़्यादा कीमती है। अभी जो यहाँ है, वो कहीं और की, किसी अन्य चीज़ से बेहतर है। 
आपको यह समझने की ज़रूरत है- यह कहीं दूसरी जगह नहीं है, यह अभी और यहीं है। चूँकि आप खुद यहाँ नहीं हैं इसलिये आपको ऐसा दिखता है। ईश्वर कहीं और नहीं हैं, वे बस यहीं हैं। गैर हाज़िर तो आप हैं।
 यही एकमात्र समस्या है। यही एक मात्र तपस्या हैं। यह कठिन नहीं है, लेकिन निश्चित रूप से यह आसान भी नहीं है। यह बिल्कुल सहज है। 
जहाँ आप अभी हैं, यहाँ से अनन्त की ओर चलना बहुत आसान है, क्योंकि यह ठीक यहीं है।

आधी-अधूरी पुकारों से ईश्वर कभी नहीं आता। आधे मन से कोशिश करने पर आत्म ज्ञान कभी नहीं होता। इसे ही सब कुछ बनाना होगा तभी यह पल भर में घटित हो सकता है।
इसमें बारह वर्ष लगेंगे, ऐसा नहीं है। एक मूर्ख को अपने अंदर तीव्रता पैदा करने में भले ही बारह वर्ष लगे, यह अलग बात है।
अगर आप अपने अंदर खूब तीव्रता पैदा करते हैं तो बस एक पल में घटित होगा। उसके बाद जीवन धन्य हो जाता है।
फिर आप सहज जीते हैं, आप जैसे चाहें, जो भी मार्ग चुनें। परंतु उस एक पल को पैदा किये बिना हर तरह की बेतुकी चीज़ें करना - फायदा क्या है?