5.18.2019

आखिर किस मुँह से हम भारतीय चंद्रशेखर आज़ाद को श्रधांजलि दे - After all, we can pay tribute to Indian Chandrasekhar Azad.

आखिर किस मुँह से हम भारतीय चंद्रशेखर आज़ाद को श्रधांजलि दे...!!!

After all, we can pay tribute to Indian Chandrasekhar Azad.

चंद्रशेखर आज़ाद को श्रधांजलि


अरे बुढिया तू यहाँ न आया कर, तेरा बेटा तो चोर-डाकू था। इसीलिए गोरों ने उसे मार दिया। जंगल में लकड़ी बीन रही एक मैली सी धोती में लिपटी बुजुर्ग  महिला से वहां खड़ें भील ने हंसते हुए कहा।

नही चंदू ने आजादी के लिए कुर्बानी दी हैं, बुजुर्ग औरत ने गर्व से कहा।
चंद्रशेखर आज़ाद
उस बुजुर्ग औरत का नाम जगरानी देवी था। इन्होने पांच बेटों को जन्म दिया था, जिसमे आखरी बेटा कुछ दिन पहले ही शहीद हुआ था। उस बेटे को ये माँ प्यार से  चंदू  कहती थी और दुनियां उसे “आजाद“ जी हां चंद्रशेखर आजाद के नाम से जानती है।
chandra sekhar aajad
आखिर किस मुँह से हम भारतीय चंद्रशेखर आज़ाद को श्रधांजलि दे

हिंदुस्तान आजाद हो चुका था, आजाद के मित्र सदाशिव राव एक दिन आजाद के माँ-पिता जी की खोज करते हुये उनके गाँव पहुंचे। आजादी तो मिल गयी थी लेकिन बहुत कुछ खत्म हो चुका था। चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत के कुछ वर्षों बाद उनके पिता जी की भी मृत्यु हो गयी थी।


आज़ाद के भाई की मृत्यु 


भी इससे पहले ही हो चुकी थी। अत्यंत निर्धनावस्था में हुई उनके पिता की मृत्यु के पश्चात आज़ाद की निर्धन निराश्रित वृद्ध माताश्री उस वृद्धावस्था में भी किसी के आगे हाथ फ़ैलाने के बजाय जंगलों में जाकर लकड़ी और गोबर बीनकर लाती थी तथा कंडे और लकड़ी बेचकर अपना पेट पालती रहीं। लेकिन वृद्ध होने के कारण इतना काम नहीं कर पाती थीं कि भरपेट भोजन का प्रबंध कर सकें। कभी ज्वार कभी बाज़रा खरीद कर उसका घोल बनाकर पीती थीं। क्योंकि दाल चावल गेंहू और उसे पकाने का ईंधन खरीदने लायक धन कमाने की शारीरिक सामर्थ्य उनमे शेष ही नहीं था।
शर्मनाक बात तो यह कि उनकी यह स्थिति देश को आज़ादी मिलने के 2 वर्ष बाद (1949) तक जारी रही।

चंद्रशेखर आज़ाद जी को दिये गये अपने एक वचन का वास्ता देकर सदाशिव जी उन्हें अपने साथ अपने घर झाँसी लेकर आये थे, क्योंकि उनकी स्वयं की स्थिति अत्यंत जर्जर होने के कारण उनका घर बहुत छोटा था। अतः उन्होंने आज़ाद के ही एक अन्य मित्र भगवान दास माहौर के घर पर आज़ाद की माताश्री के रहने का प्रबंध किया था और उनके अंतिम क्षणों तक उनकी सेवा की।

आजाद की माँ जगरानी देवी का निधन

मार्च 1951  में जब आजाद की माँ जगरानी देवी का झांसी में निधन हुआ तब सदाशिव जी ने उनका सम्मान अपनी माँ के समान करते हुए उनका अंतिम संस्कार स्वयं अपने हाथों से ही किया था।

 आज़ाद की माताश्री के देहांत के पश्चात झाँसी की जनता ने उनकी स्मृति में उनके नाम से एक सार्वजनिक स्थान पर पीठ का निर्माण किया। प्रदेश की तत्कालीन सरकार (प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री थे गोविन्द बल्लभ पन्त) ने इस निर्माण को झाँसी की जनता द्वारा किया हुआ अवैध और गैरकानूनी कार्य घोषित कर दिया। किन्तु झाँसी के  नागरिकों ने तत्कालीन सरकार के उस शासनादेश को महत्व न देते हुए चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापित करने का फैसला कर लिया।

मूर्ति बनाने का कार्य चंद्रशेखर आजाद के ख़ास सहयोगी कुशल शिल्पकार रूद्र नारायण सिंह जी को सौपा गया। उन्होंने फोटो को देखकर आज़ाद की माताश्री के चेहरे की प्रतिमा तैयार कर दी।

जब सरकार को यह पता चला कि आजाद की माँ की मूर्ति तैयार की जा चुकी है और सदाशिव राव, रूपनारायण, भगवान् दास माहौर समेत कई क्रांतिकारी झांसी की जनता के सहयोग से मूर्ती को स्थापित करने जा रहे है तो उसने अमर बलिदानी चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापना को देश, समाज और झाँसी की कानून व्यवस्था के लिए खतरा घोषित कर उनकी मूर्ति स्थापना के कार्यक्रम को प्रतिबंधित कर पूरे झाँसी शहर में कर्फ्यू लगा दिया। चप्पे चप्पे पर पुलिस तैनात कर दी गई ताकि अमर बलिदानी चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति की स्थापना ना की जा सके।

जनता और क्रन्तिकारी आजाद

आखिर किस मुँह से हम भारतीय चंद्रशेखर आज़ाद को श्रधांजलि दे - After all, we can pay tribute to Indian Chandrasekhar Azad.
आजाद हम आपको कौन से मुंह से श्रद्धांजलि दें

जनता और क्रन्तिकारी आजाद की माता की प्रतिमा लगाने के लिए निकल पड़ें। अपने आदेश की झाँसी की सडकों पर बुरी तरह उड़ती धज्जियों से तिलमिलाई तत्कालीन  सरकार ने अपनी पुलिस को सदाशिव  को गोली मार देने का आदेश दे डाला, किन्तु आज़ाद की माताश्री की प्रतिमा को अपने सिर पर रखकर पीठ की तरफ बढ़ रहे सदाशिव  को जनता ने चारों तरफ से अपने घेरे में ले लिया। जुलूस पर पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया। सैकड़ों लोग घायल हुए, दर्जनों लोग जीवन भर के लिए अपंग हुए और कुछ  लोग की मौत भी हुईं (मौत की पुष्टि नही हुईं )। चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापित नहीं हो सकी।

आजाद हम आपको कौन से मुंह से श्रद्धांजलि दें। आज जब हम आपकी माताश्री की 2-3 फुट की मूर्ति के लिए उस देश में 5 फुट जमीन भी हम न दे सकें  जिस देश के लिए आप ने अपने प्राण न्योछावर कर दिये थे।

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